Sunday, February 04, 2007

टेलिफोन बूथो की एक अलग ही दुनिया है,खासकर ग्रामीण इलाको के बुथो की.बिहार के एक गाँव श्रीनगर (पुरनिया)मे मौजुद बुथो के



टेलिफोन बूथो की एक अलग ही दुनिया है,खासकर ग्रामीण इलाको के बुथो की.बिहार के एक गाँव श्रीनगर (पुरनिया)मे मौजुद बुथो के अध्ययन के दौरान कुछ ऐसा ही देखने को मिला.वहाँ एक बूथ है-"चाँद पे फोन". इस बुथ के मालिक है -चाँद खाँ.इनके साथ मैने एक पुरा दिन गुजारा तो काफी कुछ जान पाया इस "तकनीकी बिजनेस" के बारे मे... सुबह के ६ बजे है...सङके सुनसान है,इक्का-दुक्का लोग नजर आ रहे है..चाँद खाँ अपने घर से निकलकर दुकान पर आता है,दुकान उसके घर के बाहरी दरवाजे पर ही है,इसलिए वह फटाफट दुकान की साफ सफाई कर लेता है.कि तभी राजेश आ जाता है.उसे लुधियाना फोन करना है..वहाँ उसका भाई काम करता है.चाँद झट से फोन लगा देता है.वह बात करके चला जाता है.....खाँ साहब की ये है "पहली बोहनी"(दिन की पहली कमाई)चाँद कहता है-"आज का दिन अच्छा होगा भैया,दुकान खोलते ही कस्ट्मर आ गया.."चाँद ने १२वी तक पढाई की है,आगे न पढ सका.घर वाले काम के लिए कहने लगे थे..बाते हो रही थी कि फोन की घटी बज़ उठी,चाँद ने रिसीव किया तो पता चला पटना से फोन है..."उसे सदानन्द से बात करनी है..,चाँद ने कहा"५मिनट बाद फोन किजीए बुला देता हुँ.." कुछ देर बाद सदानन्द आता है,बात कर चला जाता है,परन्तु वह १०रुपए देत है.मैने बाद मे पुछा"ये पैसा क्यू खाँ साहब?" उसने कहा-"यही तो कमाई है भैया,यहाँ से काल कम होती है,ज्यादा तो बाहर से फोन ही आता है..उसी की कमाई से तो दुकान चल रहा है." बातचीत से मालुम हुआ कि रिसीवीग चार्ज हर जगह क अलग्-अलग है.मसलन दिल्ली का १० रुपए तो पुरनिया का ५रुपए.बातो ही बातो मे ११ बज गए,तो लोगो का आना भी बढ गया.इस समय से लेकर २-३ बज़े तक लोकल काल ज्यादा होती है.दोपहर ढलने के साथ ही चाँद भी ढ्लने लगा(थक गया है चाँद्)...कारण है,वह करीब १५ द्फे इस टोले(बस्ती)से उस टोले गया है,लोगो को बुलाने के लिए.आखिर जिसका फोन आएगा उसे तो बुलाना ही होगा न् !चाम्द कहता है"भैया कभी-कभी तो मन करता है मै भी दिल्ली-पजाब चला जाउँ....थक जाता हुँ.आब्बाज़ान सम्भाले बुथ को.."असल मै यह पीङा है,जो छुपी हुई थी. आज मगलवार है,हटिया(साप्ताहिक बाज़ार्)का दिन ,आसपास के गाँव के लोग आज यहाँ खुब आते है.इसलिए बुथ वालो की भी आज "चलती" रहती है.चाँदआ ब नोरमल है,दोपहर की चिन्ता अब गायब है.बाहर मे वह दो कुर्सी और लगा देता है.तभी एक औरत घुघट ओढे आती है.सुमतीया नामक इस औरत को अपने घरवाले से बात करनी है.वह दिल्ली के करोलबाग इलाके मे रिक्शा चलाता है.सुमतिया एक पुर्ज़ा निकालकर चाँद को देती है.उसमे फोन नम्बर है.वह बात करती है...और पैसे देकर खुशी-खुशी चली जाती है. दरअसल शाम को एसटीडी काल ज्यादा होती है.चाँद कहता है"इस टाइम बाहर काम करने वाले फ्री रहते है,तो लोग बात करते है या वही से फोन आ जाता है....." चाँद आज सचमुच अच्छी कमाई हुई है,कुल ३८० रुपए!भाई यह बोहनी का कमाल है..चाँद के साथ मेरी बाते जारी है..पर लोगो का आना अब कम हो गया है..रात के ८:३० जो बज़ गए है.रेडियो पर राष्ट्रीय समाचार शुरु हो गया है...असल मे चाँद खाँ समाचार सुनकर ही दुकान बद करता है. बिहार के एक गाँव श्रीनगर (पुरनिया) मे मौजुद बुथो के अध्ययन के दौरान कुछ ऐसा ही देखने को मिला. वहाँ एक बूथ है- "चाँद पे फोन". इस बुथ के मालिक है -चाँद खाँ. इनके साथ मैने एक पुरा दिन गुजारा तो काफी कुछ जान पाया इस "तकनीकी बिजनेस" के बारे मे...

सुबह के ६ बजे है...सङके सुनसान है, इक्का-दुक्का लोग नजर आ रहे है..


चाँद खाँ अपने घर से निकलकर दुकान पर आता है, दुकान उसके घर के बाहरी दरवाजे पर ही है, इसलिए वह फटाफट दुकान की साफ सफाई कर लेता है. कि तभी राजेश आ जाता है. उसे लुधियाना फोन करना है..वहाँ उसका भाई काम करता है. चाँद झट से फोन लगा देता है.वह बात करके चला जाता है.....खाँ साहब की ये है "पहली बोहनी"(दिन की पहली कमाई)चाँद कहता है-"आज का दिन अच्छा होगा भैया,दुकान खोलते ही कस्ट्मर आ गया.."चाँद ने १२वी तक पढाई की है, आगे न पढ सका.

घर वाले काम के लिए कहने लगे थे..बाते हो रही थी कि फोन की घटी बज़ उठी,चाँद ने रिसीव किया तो पता चला पटना से फोन है..."उसे सदानन्द से बात करनी है.., चाँद ने कहा "५मिनट बाद फोन किजीए बुला देता हुँ.." कुछ देर बाद सदानन्द आता है, बात कर चला जाता है, परन्तु वह १०रुपए देत है.मैने बाद मे पुछा"ये पैसा क्यू खाँ साहब?" उसने कहा-"यही तो कमाई है भैया,यहाँ से काल कम होती है, ज्यादा तो बाहर से फोन ही आता है.. उसी की कमाई से तो दुकान चल रहा है." बातचीत से मालुम हुआ कि रिसीवीग चार्ज हर जगह क अलग्-अलग है. मसलन दिल्ली का १० रुपए तो पुरनिया का ५रुपए.

बातो ही बातो मे ११ बज गए, तो लोगो का आना भी बढ गया. इस समय से लेकर २-३ बज़े तक लोकल काल ज्यादा होती है. दोपहर ढलने के साथ ही चाँद भी ढ्लने लगा(थक गया है चाँद्).. .कारण है, वह करीब १५ द्फे इस टोले(बस्ती)से उस टोले गया है, लोगो को बुलाने के लिए. आखिर जिसका फोन आएगा उसे तो बुलाना ही होगा न् ! चाम्द कहता है "भैया कभी-कभी तो मन करता है मै भी दिल्ली-पजाब चला जाउँ....थक जाता हुँ. आब्बाज़ान सम्भाले बुथ को.."असल मै यह पीङा है,जो छुपी हुई थी.

आज मगलवार है, हटिया(साप्ताहिक बाज़ार्) का दिन , आसपास के गाँव के लोग आज यहाँ खुब आते है.इसलिए बुथ वालो की भी आज "चलती" रहती है.चाँद आ ब नोरमल है, दोपहर की चिन्ता अब गायब है. बाहर मे वह दो कुर्सी और लगा देता है. तभी एक औरत घुघट ओढे आती है. सुमतीया नामक इस औरत को अपने घरवाले से बात करनी है. वह दिल्ली के करोलबाग इलाके मे रिक्शा चलाता है. सुमतिया एक पुर्ज़ा निकालकर चाँद को देती है फोन नम्बर है. वह बात करती है...और पैसे देकर खुशी-खुशी चली जाती है. दरअसल शाम को एसटीडी काल ज्यादा होती है.

चाँद कहता है"इस टाइम बाहर काम करने वाले फ्री रहते है,तो लोग बात करते है या वही से फोन आ जाता है....."

चाँद आज सचमुच अच्छी कमाई हुई है,कुल ३८० रुपए ! भाई यह बोहनी का कमाल है.. चाँद के साथ मेरी बाते जारी है.. पर लोगो का आना अब कम हो गया है.. रात के ८:३० जो बज़ गए है. रेडियो पर राष्ट्रीय समाचार शुरु हो गया है... असल मे चाँद खाँ समाचार सुनकर ही दुकान बद करता है.

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

yah india hai sab kuch sambhav hai :)

Divine India said...

सही आंकलन…है…!!