ये कुछ हैं....हाय दिल को छु जाती है....मुन्न्वर राणा जी की तो बात ही निराली है...बिंदास अंदाज में सबकुछ् कह जाते है....आप या हम जिसके बारे बस सोच कर रह जाते हैं, तो गौर फरमाईये-
मियां मैं शेर हुं ,शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
मै लहजा नरम भी कर लुं तो झुंझलाहट नहीं जाती...
कोयल बोले या गौरया अच्छा लगता है
अपने गांव में सबकुछ भैया अच्छा लगता है
गंगा मैया तेरे गोद में अच्छा लगता है
माया मोह बुढापे में अच्छा लगता है
बचपन में एक रुपया हीं अच्छा लगता है
लिपट जाता हुं मां से मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दु में गज़ल कहता हुं हिन्दी मुस्कुराती है.
1 comment:
दिल ऐसा कि जूते भी सीधे किये बडो के,
जिद ऐसी कि खुद ताज उठा के नही पहना |
खुद से चलकर नहीं ये तर्ज़े सुखन आया है,
पांव दाबे है बुज़ुर्गों के तो फन आया है।
मेरे बुज़ुर्गों का साया था जब तलक मुझ पर
मैं अपनी उमर से छोटा दिखाई देता रहा।
ये शेर तो क्या खूब कहा है मुनव्वर राणाजी नें,
इश्क में राय बुज़ुर्गों से नहीं ली जाती,
आग बुझते हुए चूल्हों से नहीं ली जाती |
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