
याद आ रही है गांव
की
पता नही क्यों इस शहर का हर शख्स परेशां लगता है
सच्चाई क्या है..इसे खोजने मे लगा हुं
इसी उधेडबुन में कि यह शहर इतना परेशान क्यो है..
परेशां शहर में गांव की याद आ गयी
आज कई बरस हो गये-------
गांव मे घुमे हुए
क्या पता काका होगे या नही
अरे हां घुमरी काकी की मछली-भात कितनी अच्छी होती थी ना !
कोशी के कछार पर पांव से धुल उडाना
और दोस्तो के संग दिन भर मटरगस्ती करना
अब सबकुछ छुट गया है न !
तो याद आता है..मेरा गांव्..
3 comments:
good caricature yaad to aata hi hai woh mahkama jise chapo se piche chod
aaye hai.
कुछ छुट्टी वगैरह लेकर एक बार गांव घूम ही आईये. वैसे कह तो सही रहे हैं. :)
लो जी आपने तो हमें भी गांव की याद दिला दी।
सुंदर कविता !
Post a Comment