Monday, November 27, 2006

मेरे गुलज़ार ................

Gulzar me sabkuch hai jo dil ko chaiye.........
ओऽऽ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
धूप के पीछे दौड़ें
छाँव छाँव छुए ना ऽऽओऽऽ साथी रे ..दिन डूबेऽऽ
ना
थका-थका सूरज जब, नदी से हो कर निकले गा हरी-हरी काई पे , पाँव पड़ा तो फिसलेगा तुम रोक के रखना, मैं जाल गिराऊँ
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊँ दिन डूबे ना हा ऽ ऽऽतेरी मेरी अट्टी पट्टीदाँत से काटी कट्टीरे जइयोऽ ना, ओ पीहू रेओ पीहू रे, ना जइयो नाकभी कभी यूँ करना, मैं डाँटू और तुम डरना उबल पड़े आँखों से मीठे पानी का झरना
हम्म, तेरे दोहरे बदन में, सिल जाऊँगी रेजब करवट लेगा, छिल जाऊँगी रेसंग लेऽ जाऊँऽगाऽतेरी मेरी अंगनी मंगनीअंग संग लागी सजनी संग लेऽऽ जाऊँऽ
Gulzar

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