मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Wednesday, October 25, 2006
kailash kher....alaha ke bande
एक दिन था जब उसे संगीत सिखाने वाले गुरु कहा करते थे कि उसकी आवाज़ अच्छी नहीं है इसलिए वह गाना छोड़कर परचून की कोई दूकान ही खोल ले.
लेकिन उसे लगन थी और विश्वास कि वह गाना ही गाएगा.
उसके इस विश्वास ने रंग दिखाया और आज वह मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है.
इस गायक का नाम है कैलाश खेर. वही ‘अल्लाह के बंदे....’ और 'रंग दे...' गाने वाले वाले कैलाश खेर.
हालांकि यह रास्ता भी आसान नहीं था.
उन्होंने कई दिन मुंबई स्टेशन पर गुज़ारे, रात भर जागकर चाय पीकर, इधर उधर घूमते हुए.
मेरठ में पैदा हुए और दिल्ली में पले बढ़े कैलाश खेर बताते हैं कि उनका बचपन बेहद ग़रीबी में बीता और न तो फ़िल्म देखने की सुविधा थी और न ही गाने आदि सुनने का अवसर.
फ़िल्मों में सूफ़ी संगीत के लिए जगह बनाने का जो अवसर मुझे मिला है उसे मैं अपने लिए सम्मान का एक बड़ा अवसर मानता हूँ
कैलाश खेर
पर संगीत सीखने का सुर था सो सीखने लगे.
वैसे संगीत की आरंभिक शिक्षा मिली थी अपने पिता महाशय जी से लेकिन बाद में उन्होंने बहुत से गुरुओं से शिक्षा ली.
संघर्ष के दिन
फिर लगा कि संगीत से रोज़गार शायद न चले तो वे क्राफ़्ट आदि भी सीखने लगे. साथ में उर्दू की शिक्षा भी ली.
आख़िरकार उन्होंने गायन को ही अपना भविष्य बनाने के की ठान ली और मुंबई चल पड़े.
बात करते हुए कैलाश खेर ने याद किया कि वे मुंबई चले तो गए थे लेकिन वे किसी को पहचानते नहीं थे. पैसे सिर्फ़ इतने थे कि स्टेशन पर रहकर खाने के लिए पैसे बचाए जाएँ.
वे सूफ़ी संगीत ही गाते रहना चाहते हैं
वे बताते हैं कि वहीं स्टेशन पर उनकी कुछ दोस्ती हुई और उसी के भरोसे उन्हें पहला काम मिला नक्षत्र हीरे के लिए जिंगल गाने का. वे याद करते हैं कि उनके पास बस या ट्रेन के भी पैसे नहीं थे और वे बिना टिकट स्टूडियो तक रिकॉर्डिंग के लिए गए.
आज तो ‘अल्लाह के बंदे…’ ने अपने झंडे गाड़ रखे हैं और वहां लोग इज़्ज़त के साथ गाने के लिए बुलाते हैं. तीन सौ से अधिक जिंगल गा चुके हैं और स्वदेश फ़िल्म में शाहरुख ख़ान के लिए गाने का मौक़ा मिला है. पैसा भी ठीक मिलने लगा है.
लेकिन वे अभी भी धरातल पर हैं और अपने संघर्ष के दिनों को भूले नहीं हैं.
वे कहते हैं, "फ़िल्मों में सूफ़ी संगीत के लिए जगह बनाने का जो अवसर मुझे मिला है उसे मैं अपने लिए सम्मान का एक बड़ा अवसर मानता हूँ."
लेकिन वे यही गाते रहना चाहते हैं.
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1 comment:
goodmorning anjaka///
thanks for visiting on my web blog...
aapka kaun sa blog hai,,,,
aapka nam kya hai huzur.?
soory for late reply////
Girindra.
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