आगरा शिखर सम्मेलन
वर्ष 2001 में हुए आगरा शिखर सम्मेलन के बारे में राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने लिखा है कि उनको और उस समय भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को 'उन दोनों से ऊपर किसी व्यक्ति' के कारण 'अपमान' झेलना पड़ा. राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने लिखा है कि दो बार उन्होंने आगरा में अपना कार्यक्रम कम करके लौटने का फ़ैसला किया था क्योंकि समझौते को लेकर भारत अपने वादे से मुकर गया था. उन्होंने लिखा है कि उनके राजनयिकों ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मनाया. राष्ट्रपति मुशर्रफ़ के मुताबिक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दो बार हुई बातचीत के बाद एक 'संतुलित' संयुक्त घोषणा पत्र तैयार किया गया था. घोषणापत्र में आतंकवाद की आलोचना की गई थी और यह भी स्वीकार किया गया था कि कश्मीर का हल ज़रूरी है. उन्होंने किताब में लिखा है कि घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के लिए समारोह 17 जुलाई को होटल जेपी पैलेस में होने वाला था. सारी तैयारियाँ पूरी थीं. कुर्सियाँ भी तैयार थीं, जिन पर बैठकर दोनों नेता हस्ताक्षर करने वाले थे. मुशर्रफ़ ने आगे लिखा है- एक घंटे बाद मेरे तत्कालीन विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार ने मुझे सूचित किया कि भारत पीछे हट गया है क्योंकि केंद्रीय कैबिनेट ने इसे नामंज़ूर कर दिया है. लेकिन आगरा में केंद्रीय कैबिनेट नहीं थी. मैं बहुत नाराज़ हो गया. मैंने आवेश में तुरंत इस्लामाबाद लौटने का फ़ैसला कर लिया था. मुशर्रफ़ के मुताबिक़ उनके राजनयिकों ने उन्हें शांत किया. उन्होंने बाद में उन्हें घोषणापत्र का मसौदा फिर से तैयार करने की अनुमति दी और उस शाम अजमेर जाने की अपनी यात्रा स्थगित कर दी. वे आगे लिखते हैं- "फिर से मसौदा तैयार करने के लिए दो-तीन घंटे तक शब्दों और वाक्यों को लेकर काफ़ी बखेड़ा भी हुआ. आख़िरकार मेरी टीम लौटी और उन्होंने संकेत दिया की सफलता मिल गई है." राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने लिखा है कि वे भी नए मसौदे पर राज़ी हो गए थे. उन्होंने लिखा है- जैसे ही वे हस्ताक्षर के लिए रवाना होने वाले थे कि उन्हें फिर संदेश मिला कि भारत एक बार फिर पीछे हट गया है. मैंने तुरंत वापस लौटने का फ़ैसला किया. लेकिन मेरे विदेश मंत्री ने मुझे मनाया कि मैं जाने से पहले वाजपेयी जी को फ़ोन कर लूँ. मैं राजनयिक प्रोटोकॉल को पूरा करने के लिए तैयार हो गया हालाँकि मैं ऐसा नहीं चाहता था. उन्होंने रात के 11 बजे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाक़ात का भी ज़िक्र किया है. मुशर्रफ़ लिखते हैं- मैंने बड़े रुखेपन से उनसे कहा कि ऐसा लग रहा है कि हम दोनों के ऊपर भी कोई है जिसके पास हम दोनों की बातों को रद्द करने का अधिकार है. मैंने यह भी कहा कि आज हम दोनों का अपमान हुआ है. वाजपेयी जी ख़ामोश बैठे थे. मुशर्रफ़ ने आगे लिखा है कि वाजपेयी जी उस क्षण का लाभ उठाने से चूक गए.
No comments:
Post a Comment