Monday, April 10, 2006

Village Speak

आथिक युग मे अर्थ पर आश्रित रहना लाजमी है और इसे नज़रन्दाज़ करना हास्यास्पद ही होगा.महानगरीय ज़ीवन इस परिप्रेक्षेय मे काफी आगे है.यहा काम के बद्ले दाम मायने रखता है.दिल्ली से नज़दीकी रिस्ता रख्नने वाले प्रदेश इस बात को भली-भाती ज़ानते है.उतर प्रदेश, हरियाणा के ज़्यादातर ग्रामीण इलाके के लोग रोज़ी-रोटी के लिए दिल्ली से सम्बध बनाए रखे है.
हरियाणा का होड्ल ग्राम आश्रय के इसी फार्मुले पर विश्वास रखता है.दिल्ली से ९० कि.मी. की दुरी पर स्थित यह गाव बिकास के सभी मापदण्डो पर खरा उतरता है.सडक्, बिज़ली,ज़ैसी मुलभुत सुविधाओ से यह गाव लैस है,ज़िसे आप ज़ाकर देख सकते है.किन्तु पलवल ज़िला का यह गाव रोज़गार के लिए प्रत्यक्ष रूप से दिल्ल्री पर निर्भर है.
कृषि बहुल भुमि वाले इस गाव मे एक अज़ीब किस्म का व्यवसाय प्रचलन मे है,ज़िसे हम छोटे -बडे शहरो के सिनेमा हालो या फैक्ट्री आदि ज़गहो पर देखते है.वह है-साइकल्-मोटरसाइकल स्टैड्.दिल्ली मे काम करने वाले लोग रोज़ यहा आपना वाहन रख कर दिल्ली ट्रैन से ज़ाते है. एवज़ मे मासिक किराया देते है.
ज़ब मै होड्ल के स्थानिय स्टेशन से पैदल गुजर रहा था तो मैने एक ८० साल की एक् औरत को एक विशाल परती ज़मीन पर साईकिलो के लम्बे कतारो के बीच बैठा पाया...उस इक पल तो मै उसकी उम्र और विरान जगह को देखकर चकित ही हो गया पर जब वस्तुस्थिती का पता चला तो होडल गाव के आश्रयवादी नज़रिया से वाकिफ हुआ.जब मैने उस औरत से बात करनी चाही तो वह तैयार हो गयी और अपने आचलिक भाषा मे बहुत कुछ बताने लगी.उसने कहा कि खेती से अच्छा कमाई इस धधा मे है...इसमे पूज़ी नही लगती है....

इस प्रकार के गावो मे घुमना मुझे काफी भाता है..खासकर विकास के मापद्ण्द पर खरा गाव्...फणीश्वर नाथ रेणु के सपनो का गाव याद आ जाता है.

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