Tuesday, January 25, 2022

पुस्तकालय क्यों जरूरी है!

ये कुछ दृश्य हैं, जो विगत दो साल के दौरान पूर्णिया जिला में देखने को मिला, मसलन क्रिकेट मैच हो रहा हो, और मैदान में किताबों को जगह दी गई हो। 

शहर में कुछ बुजुर्ग, जो घर से निकलने में असमर्थ हैं लेकिन वे कुछ किताबें पुस्तकालय तक पहुंचाना चाहते हैं, फोन करते हैं और एक गाड़ी आती है, किताबें ले जाती है। हर पंचायत के पुस्तकालय के लिए लोगबाग किताबें दान कर रहे हों...

शहर के मुख्य चौराहे के पास दीवार पर किताबों से संबंधित एक ‘ज्ञान की दीवार’ बना दी गई हो....

यह कुछ ऐसी बातें हैं जो इस दौर में सुनने और देखने  को बहुत कम मिलती है। क्योंकि विकास के मानकों में भौतिक चीजें हमारे आपके जीवन में इतनी हावी हो चली है कि किताबें बहुतों से दूर हो गई है। ऐसे में यदि कोई जिला किताब और पुस्तकालय के लिए अभियान चला रहा हो तो इसकी गंभीरता को समझने की जरूरत है।
पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार अक्सर कहते हैं कि समाज को समझने – बूझने का एक तरीका यह भी है कि उस समाज में किताबों को क्या स्थान है। 

वह कहते हैं, “किसी समाज या समुदाय के मिज़ाज या उसके टोन को परखने का एक प्रतिमान ये हो सकता है कि उसकी सामूहिक चेतना में किताबों को क्या स्थान प्राप्त है। पढ़ने वाला समाज प्रायः ज्यादा उदार, ज्यादा लचीला एवं ज्यादा विकासशील होता है। वह परिवर्तन के प्रति ज्यादा स्वीकार्यता भी रखता है। समुदाय से उतर कर जब हम व्यक्तिमात्र पर किताबों के प्रभाव की पड़ताल करते हैं तो पाते हैं कि किताब के आरंभ में व्यक्ति जो होता है अंत तक बिल्कुल वही नहीं रह जाता। प्रभाव कम, ज्यादा, अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है, किन्तु व्यक्ति बिल्कुल वही नहीं रह जाता। ”

शायद यही वजह है कि साहित्य-कला अनुरागी जिलाधिकारी राहुल कुमार ने अभियान किताब दान की शुरुआत की।
 
मुझे याद है, 25 जनवरी 2020 को इस अभियान की जब शुरूआत हुई थी तो पहले दिन ही 400 किताबें प्राप्त हुई थी। जिला के समाहरणालय सभागार में किताब दान अभियान की शुरूआत हुई थी। राहुल कुमार ने उस दिन भी कहा था कि यह अभियान लोगों का है, इसमें हर कोई सहयोग करेगा। उस दौरान पूर्णिया के डीडीसी अमन समीर और ट्रेनी आईएएस प्रतिभा रानी जी भी मौजूद थीं। 

हालांकि कोराना महामारी की वजह से यह अनोखा अभियान प्रभावित हुआ लेकिन इसके बावजूद अबतक लोगों ने एक लाख पचास हजार किताबें इस अभियान में दान दी है जो जिला के विभिन्न पुस्तकालयों में पहुंच चुकी है।
मुझे उस वक्त सबसे अधिक खुशी मिली जब यह खबर सुनने को मिली कि दस साल का एक लड़का, जिसका नाम ‘सक्षम’ है, उसने अपने जन्मदिन पर इस अभियान में 151 पुस्तकें भेंट की। आप इससे समझ सकते हैं कि पूर्णिया जिला के लोगों के बीच किताब और पुस्तकालय ने किस अंदाज़ में अपनी जगह बना ली है। 

पिछले साल पूर्णिया जिला के परोरा गाँव के पुस्तकालय जब जाना हुआ था, तो वहां के युवाओं का उत्साह देखने लायक था। सच कहूं तो लगा कि क्या इवेंट की तरह उत्साह भी चलता बनेगा, लेकिन बात कुछ और थी। किताबों के प्रति लोगों का स्नेह बढ़ता गया और आज एक साल बाद फिर उसी पुस्तकालय परिसर पर जब पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार पहुंचे तो दोपहर बाद किताबों में घिरे लोग ही दिखे। यह दृश्य ही समाज में पुस्तकालय के महत्व को बताने के लिए काफी है।

सोशल मीडिया के इस दौर में सबकुछ एक झटके में सबके सामने आ जाता है। आप चाहें तो अपने काम को दुनिया जहान को दिखा सकते हैं। यह इस मीडियम का एक सकारात्मक पक्ष है लेकिन वहीं दूसरी ओर एक पक्ष यह भी है कि काम का रंग जबतक चढ़ता है, सोशल मीडिया के लिए वह काम तबतक पुराना हो जाता है। ऐसे में किताब दान अभियान की बात की जाए तो भला किताबों की बात, पढ़ने – लिखने की बात कब पुरानी हुई है। यदि समाज जागरूक है और उसके मन के स्पेस में किताबों के लिए जगह है तो जान लें, इस तरह के अभियान सिर पर रखे जाएंगे। हम उम्मीद तो बेहतर कल की कर ही सकते हैं। 

कभी कभी सोचता हूँ कि जिला की कमान संभालने वाले अधिकारी को लोगबाग ढेर सारे विकास कार्यक्रमों, भवनों या अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए याद करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें लोग बदलाव के लिए याद करते हैं। किताब दान अभियान की शुरूआत करने वाले राहुल कुमार ऐसे ही लोगों में एक हैं। 

पूर्णिया में गाँव -गाँव तक पुस्तकालय पहुँचाने का उनका अभियान दरअसल पूर्णिया के जन-जन का अभियान है। लोगबाग अपनी आदतों में किताब को शामिल करें, इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

राहुल कुमार के इस अभियान को पूर्णिया को अपनी आदत में शामिल करना चाहिए ताकि आने वाले समय में भी पुस्तकालय हर पंचायत में जीवित रहे, यह काम हम आप ही कर सकते हैं। उनके काम की जहां भी बात होती है, वह बड़ी दूर तक अपनी आवाज पहुंचाती है।

मैं इस अभियान को बहुत नजदीक से देखता आया हूं। उम्मीद है कि हर पंचायत में लाइब्रेरी जीवित रहेगी और लोगबाग गाँव के उस किताब घर को इज़्ज़त देंगे। इन सबके बीच यहां यह भी बताना जरूरी है कि पूर्णिया में महात्मा गांधी तीन दफे आए थे। 1925, 1927 और 1934 में गांधी जी यहां आए थे। यहां एक घटना का जिक्र जरूरी है। 13 अक्टूबर 1925 को बापू ने पूर्णिया के बिष्णुपुर इलाके का दौरा किया था। बापू को सुनने बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। शाम को गांधी जी ने स्थानीय ग्रामीण श्री चौधरी लालचंद की दिवंगत पत्नी की स्मृति में बने एक पुस्तकालय मातृ मंदिर का उद्घाटन किया था। बापू ने अपने नोट्स में लिखा है कि ‘बिष्णुपुर जैसे दुर्गम जगह में एक पुस्तकालय का होना यह संकेत देता है कि यह स्थान कितना महत्वपूर्ण है।'

उस दौर में पुस्तकालय का होना यह बताता है कि पूर्णिया जिला के ग्रामीण इलाकों में पढ़ने के प्रति लोगों का खास जुड़ाव था। 

आज एक बार फिर पूर्णिया पुस्तकालय को लेकर गंभीर हुआ है और इसका श्रेय जाता है पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार को। तो चलिए, आइये हम सब अपने व्यस्त समय से कुछ पल निकालकर जिला के विभिन्न पंचायतों के लाईब्रेरी चलते हैं और किताबों के साथ समय गुजारते हैं। साथ ही उन किताबों को नजदीक से देखते हैं जिसने ' अभियान किताब दान ' के तहत इतनी लंबी दूरी तय की है।