Monday, August 09, 2021

बस अपने लिए खेती करता हूं ...

मैं खेती बस काम भर का करता हूं, आप पूछ सकते हैं कि काम भर का खेती क्या होता है? तो बताता चलूं कि अपने घर के डाइनिंग टेबल के लिए अपनी खेती होती है, थोड़ी सी जगह में धान, थोड़ा सा गेहूं, तेल के लिए सरसों, दाल के लिए मूंग, बारह महीने अलग अलग ऋतुओं के हिसाब से सब्जी। फिर कुछ जगह में  मक्का , फल के मौसम में आम -लीची , कटहल अमरूद अनार आदि। एक छोटा सा तालाब है, जिसमें मछली। 

दरअसल यह सब इसलिए लिख कर बता रहा हूं क्योंकि अक्सर लोग किसानी मुद्दे पर कुछ सवाल पूछ लेते हैं, पहले एक्सपर्ट की तरह बतकही कर लिया करता था लेकिन पिछले दो साल से खेती बाड़ी पर विशेषज्ञ दिखने का भरम त्याग चुका हूं। अब एक स्वार्थी किसान के रूप में आप सबके सामने हूं जो अब केवल और केवल अपने लिए उपजाता है। 

ऐसे लोग, जिन्हें दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए और भी बहुत कुछ करने को आता हो, उसे खेती तो मुनाफे के लिए करनी नहीं  चाहिए। दरअसल जितना मेहनत खेत मांगता है, वह सबके बस की बात नहीं है और फिर बाजार तो किसानी के लिए फिट कभी रहा ही नहीं, वह तो साहूकारों के लिए बना है।

मैं जब 2013 में बिहार लौटा था तो उस वक्त घर की जरूरत साफ अलग थी। धीरे धीरे खेती को अलग रूप देने की कोशिश करने लगा। फिर लगा कि जीवन में चाहिए आपको कितना ? इसे तय कौन करेगा ? समाज या खुद मैं? दिखावे के चक्कर में हम जीवन को विज्ञान की प्रयोगशाला और फिर बैंक का लॉकर बना देते हैं, जबकि मूल चीज मन की शांति है!

इसी शांति के लिए हम अब केवल खुद के लिए उपजाते हैं, खेत की तरह जीवन में भी हरियाली को महत्व देने लगे हैं। क्षणिक सुख के चक्कर में बहुत कुछ से हम हाथ धो बैठते हैं, इसलिए उतना ही जितनी की जरूरत है। बाद बाकी बहुत कुछ है जीवन में कर गुजरने के लिए ..

जीवन में बहुत कुछ ठहर कर भी देखना चाहिए। फसल को देखता हूं तो लगता है वह कितना कुछ देती है हम सबको। वृक्ष को देखिए, केवल देती है, उलट में हमसे कुछ नहीं लेती है। ये सब ठहर के देखने की चीज है। मुनाफे के चक्कर में हम सब फसल चक्र को तोड़ देते हैं, धरती के बारे में भी नहीं सोचते हैं।

किसान की डायरी लिखते हुए पिछले सात साल में इतने उतार चढ़ाव देखा हूं कि टूटकर जुड़ने की जुगत सीख चुका हूं, यह भी अनुभव है। कबीर की वाणी में " अनुभव गावे सो गीता.." शायद यही है।

किसान के साथ एक और विशेषण हम सब जोड़ देते हैं, और वह है दुख। दुख भला किस पेशे में नहीं है,ऐसे में सुख की तलाश भी किसान को करनी होगी। उसे अपने लिए उपजाना होगा, अपने लिए ....

3 comments:

अनूप सेठी said...

आपकी जीवनशैली जानकर बहुत सुकून मिला।

Chandra Shekhar Azad said...

सुकून की तलाश में भटकते लोगों को राह दिखा रहे हैं आप।

Ravi Kumar said...

किसान डायरी अच्छी लगी।।