मोहन राणा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक हैं। बाथ (ब्रिटेन का एक रोमन शहर) निवासी मोहन राणा एक ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे एक निरंतर यात्रा कर रहे हों। अपने ब्लॉग- जो देखा भूलने से पहले की ताजा पोस्ट में उनहोंने काबुलीवाला कहता है, शीर्षक से अपनी बात कही है। पढिए उनकी यह कविता-
मौसम तो जैसा है ठीक ही है
गरमी हो या सर्दी पतझर हो या बरसात
अगर में जग जाऊँ तो अच्छा है
पता नहीं पर दिल्ली में सब सो रहे हैं
यह कैसा अनाम मौसम,पता नहीं वे किसके पैर हैं
जिन्हें दिखता नहीं कहते हैं अमरीका के पाँव दबाए जा रहे हैं
दिल्ली में सब सो रहे हैं
जिन्हें दिखता नहीं कहते हैं अमरीका के पाँव दबाए जा रहे हैं
दिल्ली में सब सो रहे हैं
किसकी यह नींद किसका यह सपना
सोचता काबुलीवाला जागकर
किसी को बताऊँ जो हैरान ना हो,
उनींदे में पुकारता जागते जागते रहो
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