राजनीति में किसान सबसे सॉफ्ट टार्गेट होता है। मंच से किसान संबंधी बातें करते हुए दलों के लोग अद्भूत- अद्भूत शब्दों का प्रयोग करते हैं! फ़सल के लिए रिसर्च, बोर्ड, भवन आदि की बात करते हुए अरबों रुपये की बातें सुनकर किसान का मुख मंडल चमक उठता है!
किसान ये सब सुनकर वापस लौट आता है, खेत को खाद पानी से सींचता है, आसमान की तरफ देखता है उम्मीद लिए शानदार फसल की आशा करता है।
दूसरी ओर, चुनाव के लिए समां बंध जाता है। टिकट और फिर प्रचार-प्रसार का काम लोगबाग देखने लगते हैं।
सर्वे एजेन्सी हवाई अड्डा, मखान, किसान सम्मान निधि जैसे 'की-वर्ड' को लेकर शानदार तिलिस्म रचते हैं, एक से बढ़कर एक नारे गढ़े जाते हैं और फिर चुनाव परिणाम के बाद सभी बातें पुरानी हो जाती है....
राजधानी में उत्सवों का दौर शुरू हो जाता है, कला- साहित्य पर चर्चा होती है, समागम होता है तो कहीं डेवलपमेंट- इन्वेस्टमेंट पर पांच सितारा बैठकी जमती है।
इन सबके बीच किसान कहीं खो जाता है अगले चुनाव तक के लिए। लेकिन वह एकजुट नहीं हो पाता है क्योंकि बाजार से उसकी दूरी बनी ही रह जाती है!
धान, गेंहूँ, मक्का, मखान उपजता है, उपजता ही रहेगा। बाद बांकी भूमि सर्वे के नाम पर जमीन को तिलिस्म बनाने का काम सरकार करती ही रहेगी आने वाले कुछ वर्षों तक।
वैसे कल प्रधानमंत्री भागलपुर जाएँगे वाया पूर्णिया! बिहार में इस बार मोदी जी भाजपा संगठन और संघ को दरभंगा- पूर्णिया- भागलपुर यानि मिथिला, सीमांत और अंग क्षेत्र में सक्रिय कर रहे हैं। इन इलाकों के विधानसभा क्षेत्रों पर अलग से नजर रखी जा रही है! शायद, बदलाव की उम्मीद है संघ और संगठन को !
बाद बांकी किसान का क्या है! वही धान- गेंहूँ- मक्का- मखान!
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