Friday, October 28, 2022

कथावाचक पंकज त्रिपाठी


मुझे जिस तरह फणीश्वर नाथ रेणु का साहित्य अपनी ओर खींचता है, ठीक उसी तरह अभिनेता पंकज त्रिपाठी की बोली बानी भी आकर्षित करती है। सच यह है कि मुझे किस्सागो लोग सबसे अधिक पसंद हैं। और अपने पंकज त्रिपाठी भैया भी कमाल के किस्सागो हैं। 
उनसे आप जब कोई सवाल पूछेंगे तो जवाब की रेखा ऐसी होगी मानो कोई पेंटिंग हो। वे बातों ही बातों में आपको अपने गाम-घर लेकर चले जायेंगे और फिर खेत-पथार के बीच छोड़ देंगे। उनकी बातों में आसपास के ढेर सारे लोग होते हैं, कई चरित्र नायक होते हैं। वे कहानियों में कहानी खोज लाते हैं। कल्पना की बात करते हैं, आसमां की बात करते हैं। सच पूछिए तो मुझे वे तो खेतिहर अभिनेता लगते हैं, जिसे पता होता है कि धान की खेती कैसे होगी, गेंहू में कितनी पटवन की आवश्यकता है। 

अभी यूट्यूब पर उनकी एक बातचीत सुन रहा था, ऋचा अनिरूद्ध जी के साथ। इसमें वे एक जगह कहते हैं- "हम आम, महुआ, परवल, टमाटर के बीच के अभिनेता हैं। "

उनकी यह बात सुनकर मुझे रेणु की कहानी रसप्रिया को याद आ गई। यह कहानी मुझे बहुत पसंद है। कहानी की शुरुआत इस वाक्य से होती है- “धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नयी झलक झिलमिला गयी- अपरूप –रूप ! ”

दरअसल पंकज भैया का अभिनय और उनका किस्सागो चरित्र सचमुच ‘रेणु की रसप्रिया’ ही है। आप उनकी कोई बातचीत सुन लें, हर बातचीत में गाँव सबसे अधिक मुखर होता है। मुझे वे मुंबई में एक देहाती लगते हैं, जो अपने संग गाम - घर लिए चलता - फिरता रहता है। यदि आप फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य में रुचि रखते हैं तो उनके उपन्यास ' परती परिकथा' से भी परिचित होंगे। इस उपन्यास में एक भिम्मल मामा हैं। रेणु का यह पात्र कोई गैरवाजिब बात नहीं कहता लेकिन, उसको अपने ढंग से सुनाता है। यही पंकज त्रिपाठी भैया का अंदाज है। 

ऋचा जी के कार्यक्रम Zindagi with Richa में पंकज भैया मुझे रेणु के किसी स्केच की तरह लग रहे थे, जिसकी आँखों में गाँव है और आँखें भी कैसी, मानो वह गाँव से निकल रहा हो...

दो घंटे से अधिक लंबी इस बातचीत को सुनते हुए आप अनुभव कर सकते हैं कि पंकज त्रिपाठी भैया असल में कमाल के कथावाचक हैं। एक ऐसा कथावाचक जो पल भर में आपको हँसा देगा तो दूसरे ही पल आपको रूला भी देगा। 

पंकज जी के इस इंटरव्यू को देखते हुए मुझे रेणु जी का लिखा बिदापत-नाच याद आने लगा। बिदापत नाच में रेणु लिखते हैं-
“दुखी - दीन, अभावग्रस्तों ने घड़ी भर हँस-गाकर जी बहला लिया, अपनी जिंदगी पर भी दो-चार व्यंग्य बाण चला दिये, जी हल्का हो गया। अर्धमृत वासनाएं थोड़ी देर के लिए जगीं,  अतृप्त जिंदगी के कुछ क्षण सुख से बीते। मिहनत की कमाई मुट्ठी भर अन्न के साथ-साथ आज इन्हें थोड़ा सा ‘मोहक प्यार’ भी मिलेगा, इसमें संदेह नहीं। आप खोज रहे हैं – आर्ट, टेकनीक और न जाने क्या-क्या और मैं आपसे चलते-चलाते फिर भी अर्ज करता हूँ कि यह महज बिदापत नाच था।”

और फिर चलते-चलते यही कहूंगा कि अभिनय के क्षेत्र में पंकज त्रिपाठी जो भी हों, असल में वे रेणु के स्केच हैं...

1 comment:

Anonymous said...

अदभुत