Tuesday, September 01, 2020

उम्मीद : पूर्णिया

दो अक्टूबर,2019 को पूर्णिया समाहरणालय में शायद पहली बार बापू की जयंती मनाई गई थी। सुनकर आपको ताज्जुब लगेगा लेकिन यह सच है। गाँधी की तस्वीर हर जगह दिख जाती है लेकिन उन पर बातचीत बहुत कम लोग करते हैं।

पूर्णिया जिला के सुदूरतम इलाकों में एक है टिकापट्टी। यहाँ बापू आए थे, जगह चिन्हित है लेकिन वहाँ चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा रहता था, 30 अक्टूबर 2019 को पूर्णिया के जिलाधिकारी उस जगह की यात्रा करते हैं, फिर 15 नवंबर 2019 को उसी जगह सूबे के मुख्यमंत्री का कार्यक्रम होता है, वह परिसर गाँधी मय हो जाता है।

जिला स्वच्छता के आंकड़ों में पिछड़ा नजर आ रहा था, ग्रामीण इलाकों में शौचालय निर्माण को लेकर अबतक जोश दिख नहीं रहा था, अचानक एक दिन किसी गाँव में कुदाल लेकर शौचालय निर्माण के लिए गड्ढ़ा करते जिलाधिकारी दिख जाते हैं, यह सब पहली बार हो रहा था।

पुस्तकालय को लेकर अभियान की शुरूआत होती है- किताबदान। वहीं जिला का एक पंचायत भवन देश भर की सुर्खियां बटोरता है- रूपसपुर खगहा। मुख्यमंत्री खुद आते हैं उस पंचायत सरकार भवन परिसर को देखने। हां एक ही परिसर में पंचायत सरकार भवनस्कूलआंगनबाड़ीअस्पतालपशु चिकित्सालयपुस्तकालयपैक्स और जलाशय मौजूद हैं। 

फरवरी,2020 में यह जिला 250 साल पूरा करता है, देश के पुराने जिलों में एक पूर्णिया उस दिन को खास बनाना चाहता है, और फरवरी 2020 में पूर्णिया एक यादगार कार्यक्रम का गवाह बनता है, देश भर में जिला की बात होती है।


फिर अचानक पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आ जाती है, सबकुछ थम जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में काम करने वाले अपनी माटी की तरफ लौटते हैं, उनके लिए पूर्णिया में कल्सटर में रोजगार का सृजन होता है। शहर के सदर अस्पताल में डेडिकेटेड कोविड हेल्थ केयर सेंटर बनाया जाता है। कठिन  से कठिन वक्त में सकारात्मक कार्यों के लिए एक स्पेस बनता दिख रहा है।

 

यह सब एक साल का लेखा -जोखा है, पूर्णिया जिला का। बहुत कुछ और भी होगा लेकिन स्मृति में यह सब सबसे आगे है। पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार पिछले साल एक सितंबर को जिला का कार्यभार संभाले थे। हमने उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा था। 


मेरी स्मृति में 15 नवंबर 2019 एक अलग ही रंग में दर्ज है। उस दिन नीतीश कुमार टिकापट्टी स्थित गांधी सदन पहुंचते हैं। परिसर में हम गांधी के प्रिय भजन वैष्णव जन.. की धुन सुनते हैं। परिसर गांधीमय था। भीतिहरवा आश्रम की झलक वहां दिख रही थी। मुख्यमंत्री परिसर को देखते हैंवे गांधी सदन के कमरे में लगी फोटो प्रदर्शनी देखते हैं। इन सबके बीच मैं चुपचाप पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार के चेहरे को देखता हूंगांधी और उनके चरखे के बारे में सोचता हूं। एक उजड़े- बिखरे परिसर में गांधी की स्मृति को जीवंत करने वाले अपने नायक को मैं चुपचाप देखता रह जाता हूं। रेणु के इस अंचल में साहित्य-कला अनुरागी अपने जिलाधिकारी को बापू की स्मृति को जीवंत करते देखता हूं। मैला आंचल में एक जगह रेणु लिखते हैं- सतगुरु हो! जै गांधीजी! …बाबा …जै ... भीतर रेणु का बावनदास मानो बता रहा हो कि दुनिया जैसी भी हो गांधी रहेंगे....

 

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

गांधी जी दिखाई दिये कहीं अच्छा लगा।