Saturday, April 25, 2020

कहाँ से आये हो कहाँ जाओगे?

पूर्णिया ज़िले के लिये कभी एक कहावत प्रचलित थी - "जहर नै खाऊ, माहुर नै खाऊ, मारबाक होये त पूर्णिया आऊ."

कोरोना संक्रमण के इस दौर में लौट आए  श्रमिकों, कामगारों को जब देखता हूं, उनकी बातें सुनता हूं तो इस कहावत की माया में फंस जाता हूं।

गाँव के युवा तबक़े के लोग कह रहे हैं कि वे अब मजदूरी करने दिल्ली-पंजाब नहीं जाएंगे। फिर उन्हीं में कोई कहता है कि मज़दूरी के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है. 

नियति पर विश्वास करने वाले हम जैसे लोग अब बस यही कह सकते हैं - सबहि नचावत राम गोसाईं. गाँव के 20-25 साल के लड़कों की बातें सुनने के बाद मैं खुद से भी पूछता हूँ कि कहाँ जाऊं मैं?

मुझे कबीर याद आ रहे हैं, उनकी एक वाणी है -" कहाँ से आये हो कहाँ जाओगे? मोल करो अपने तन की.."

1 comment:

RAJU BATTI said...

so nice
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