Monday, October 21, 2019

क्या आप स्वच्छाग्रही हैं?

स्वच्छता को लेकर खूब लिखता -पढ़ता रहा हूँ लेकिन इन दिनों लिखने -पढ़ने के साथ ग्राउंड जीरो में समय बिता रहा हूँ। खासकर उस इलाके में जहां 'शौचालय नहीं है, सफाई नहीं है, स्कूल दूर है' जैसी बातें मुहावरे की तरह लोगबाग की जुबान पर चढ़ा हुआ है। 

थोड़ा पीछे चलते हैं। अप्रैल 2018 की बात है। 'चलो चंपारण- स्वच्छाग्रह से सत्याग्रह' नामक एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। शौचालय निर्माण आदि को लेकर खूब काम हुआ था। प्रधानमंत्री जी का एक बड़ा कार्यक्रम मोतिहारी में आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम से पहले और उनके कार्यक्रम तक यूनिसेफ की तरफ से मुझे लोहिया स्वच्छ बिहार मिशन के  साथ मिलकर बिहार के सभी जिले की दैनिक रिपोर्ट भेजनी होती थी। 

मैं पटना में 'एसी कमरे' में बैठकर हर जिले के कॉर्डिनेटर के साथ सम्पर्क में था और स्वच्छता को लेकर जो भी काम हो रहा था, उसकी रपट फाइल करता था, वह अद्भुत अनुभव रहा लेकिन वह फील्ड वर्क नहीं था।

अब आइये 19 अक्टूबर 2019 की बात करते हैं। पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार शौचालय निर्माण में तेजी के लिए एक स्पेशल ड्राइव आरम्भ करते हैं- 100 घण्टे का स्पेशल ड्राइव ताकि हर घर में बन जाये शौचालय। 

हमने सोचा कि इस बार जमीन का अनुभव हासिल करते हैं, चुपचाप ही सही स्वच्छाग्रही बनते हैं, पटना के एसी कमरे में बैठकर स्वच्छाग्रही की रपट तैयार करने में जो कुछ अपने भीतर चल रहा था, उसको ग्राउंड में अनुभव करते हैं। यही वजह है कि राहुल सर के इस ड्राइव को दिन -रात ग्राउंड जीरो में जाकर देखने लगा हूँ। 

मेरा गाम घर जो पूर्णिया जिला के चनका पंचायत में है, वहां और आसपास के गाँव में सुबह-दोपहर-शाम में लोगों को शौचालय निर्माण के प्रति हाथ बढाते देखने लगा। प्रखण्ड और जिला स्तर के अधिकारियों को सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से रूबरू होते देख रहा हूँ, जो कि सुखद अनुभव है, मेरी स्मृति में सबकुछ दर्ज होता जा रहा है, जिसे आगे भी लिखना है।

हम लिखते - पढ़ते वक्त चाहे कुछ भी कह दें लेकिन लोगबाग को सरकारी सुविधाओं से जोड़ना चुनौती भरा काम है। शौचालय के लिए जमीन और ईंट-बालू -सीमेंट की ही केवल आवश्यकता नहीं होती है बल्कि जिसे बनाना है, उसके मन के भीतर भी एक निर्माण कार्य सम्बंधित अधिकारी , कर्मचारी या पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि को करना होता है। इन दिनों हर दिन यही देख रहा हूँ।

याद आता है जब प्रधानमंत्री जी के 'चलो चंपारण-स्वच्छाग्रह से सत्याग्रह' के लिए रपट तैयार कर रहा था तब केवल एक्ससेल सीट और अखबारों के कतरन , मीडिया के वीडियो फुटेज को ही देखता-पढ़ता था और कई बार जिला स्तर पर यूनिसेफ- लोहिया स्वच्छ बिहार मिशन के सहयोगियों से बात करते हुए लगता था कि यह काम कितना आसान है !आराम से कंप्यूटर स्क्रीन पर रपट को देखना लेकिन अब समझ रहा हूँ कि ग्राउंड जीरो में कितना कुछ करना पड़ता है। 

लोगों के बीच जाकर जब आप जागरूकता का मोर्चा  थामते हैं तब बहुत धैर्य से बहुत कुछ सुनना पड़ता है।

हम पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार जी के शुक्रगुज़ार हैं जो जिला को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) कराने के लिए स्पेशल ड्राइव चला रहे हैं, जिसे गाम घर में उत्सव की तरह देखा जा रहा है।  हर दूसरा आदमी स्वच्छाग्रही दिख रहा है जो शौचालय को लेकर बहस भी कर रहा है, आलोचना भी कर रहा है और फिर कुदाल थाम कर अपने परिवार को एक अस्वच्छ आदत से मुक्त करने के लिए निर्माण काम में जुट जाता है।

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