दुर्गा पूजा के दौरान छोटी बच्चियों को देवी मानकर भोजन कराने की परंपरा है। अष्टमी और नवमी को तो खास तौर पर।
पूजा के दौरान पंखुड़ी को जब कुमारी भोजन के लिए एक जगह ले गया और फिर वापस उसके संग घर लौटा तो बेटी पूछ बैठी कि आज सब मुझे प्रणाम क्यूं कर रहे हैं? पंखुड़ी के सवाल ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि हम सब कितने बहुरुपिये हैं, कितने तरह के मुखौटे लगाए जीवन जी रहे हैं।
एक तरफ जहां बेटे को लेकर तमाम तरह की धारणाएं बनी हैं कि बेटा ही कुल बढ़ाएगा आदि-आदि। या बेटी बचाओ जैसी बातें, वहीं जब दुर्गा पूजा में कुमारी भोजन के लिए बेटी की खोज करते लोगों को देखता हूं और फिर कुमारी भोजन के बाद दो-तीन मिनट बेटी की पूजा करते लोगों को देखता हूं तो लगता है कि हम कितने तरह का नाटक रचते हैं।
कुमारी भोजन की यह परंपरा हर जगह दिखती है। वहीं पूजा के मेले में छेड़छाड़ की घटनाएं भी आम है। एक तरफ कुमारी पूजा भोजन वहीं दूसरी तरफ लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं..
हम मुखौटे में जीने लगे हैं। धर्म के नाम पर बेटी की पूजा वहीं बेटे के लिए मन्नत मांगते लोग भी हैं और सबसे खतरनाक बेटियों के साथ छेड़छाड़ और हिंसा।
ऐसे में कुमारी भोजन को लेकर पंखुड़ी के सवाल ने तो एक पल के लिए सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि क्या जवाब दिया जाए लेकिन लगा कि मुझे भी मुखौटा उतार कर बेटी से बात करनी चाहिए।
बच्चों के सवाल ही तो मुश्किल लगते हैं जवाब देने में गिरींद्र नाथ जी। उनकी निश्छलता के सामने नकाब टूट जाते हैं। कितना साधारण सा सवाल था पंखुड़ी का, किंतु जवाब देना उतना ही मुश्किल ।
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