Tuesday, October 02, 2018

लाठी खाना ही हमारे कपाड़ में लिखल है

आज जब किसानों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल कर रही है तब इस तस्वीर की याद आ गई। किसान इस मुल्क का सबसे 'सॉफ्ट टार्गेट' है। हम इस्तेमाल की चीज हैं। जब जिस निज़ाम का मन किया हम पर लाठी बरस गई।

चुनावी भाषणों और घोषणा पत्रों में किसान शब्द प्रमुखता से छाए रहते हैं। निज़ाम कोई हो, पिसता किसान ही है। यह किसान मार्च भी दिन गुजरते ही सुर्खियों से गायब हो जाएगा। फिर हम सब दिहाड़ी हो जाएंगे, फसल में लग जाएंगे। सब्सिडी, किसान ऋण की घोषणाओं के बीच धान-दलहन- गन्ना और अन्य फसलों की कटाई का समय आ जाएगा और फिर जब चुनाव आएगा तो चुनावी रैली में नेताओं के मुख से किसान वाणी निकलने लगेगी।

आज के दिन जब इंटरनेट और सेमिनार हॉल में गांधी जी और शास्त्री जी की बात हो रही है उसी वक्त किसानी कर रहे लोगों पर वॉटर कैनन और आंसू गैस छोड़ा जाना बताता है कि सच यही है, बाद बांकी सब बाजार है।

दरअसल सच यही है कोई भी किसान को आत्म निर्भर बनते नहीं देखना चाहता। तंत्र ऐसा है कि हमारी उपज की कीमत पर कोई बात नहीं करना चाहता।

किसान की पीड़ा ही सबको अच्छी लगती है। आज जब किसान भीड़ बनकर सड़क पर हैं तब हर कोई उनकी बात कर रहा है। बाद बांकी हम किसानी कर रहे लोग अपने खेत संघर्ष करते रह जाते हैं। पशु बीमा, फसल बीमा या फिर सिंचाई योजना का लाभ हासिल करने के लिए कागजी प्रक्रिया ऐसी है कि हम थक हार कर घर ही लौट आते हैं। गाम का पलटन ठीक ही कहता है-
 " लाठी खाना ही हमारे कपाड़ में लिखल है। "


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