Tuesday, March 31, 2015

सुशील, मीनाक्षी और ‘हरी-भरी’

एक हैं जे सुशील और एक हैं मीनाक्षी। और इनके संग रहती हैं एक सुंदर सी हरी-भरी । आपके मन में यह सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर ये हरी भरी कौन हैतो इसके लिए पहले हमें सुशील-मीनाक्षी को जानना होगा। दरअसल यह बुलेटबाज़ जोड़ी है, जिसने अपनी हरी बुलेट का नाम रखा है- हरी-भरी

हमने शहर
गांव करते हुए जीवन में बुलेट प्रेमी तो बहुत देखे लेकिन रंगरेज बुलेटबाज नहीं देखा था। इस जोड़ी से हमारी मुलाकात होती है अपने गांव चनका में। मक्का से सजे खेतों से गुजरते हुए हमारी नजर जब इस रंगरेज बुलेट प्रेमी पर पड़ती है तो मन के भीतर रंग से जुड़े कई गीत खुद ब खुद बजने लगे और मैं एक किसान मेजबान की तरह रंग से प्रेम करने वाले इस जोड़ी को अपने अहाते ले आता हूं।

पत्रकार जे. सुशील और कलाकार मीनाक्षी झा की कहानी बहुत मजेदार है। इस रंगरेज जोड़ी ने देश भर में दर्जनों शहरों के कई घरों और स्कूलों में घूम-घूम कर वॉल पेंटिग की है और अपनी संतुष्टि का नया जरिया ढूंढा है। जे सुशील जहां बीबीसी हिंदी सेवा में नौकरी करते हैं तो वहीं उनकी पत्नी मीनाक्षी ने जेएनयू से आर्ट हिस्ट्री में एमए किया है। जे सुशील ने अपनी पढ़ाईलिखाई जेएनयू और आईआईएमसी से की है।

नौकरीपेशा जिंदगी में भी यह जोड़ी न केवल खुद के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए वक्त निकाल रहे हैं। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि छुट्टियां मिलते हीं हम सब अपने परिवार के संग बाहर घुमने निकल जाते हैं लेकिन यह जोड़ी रंग के लिए बाहर तो निकलती है लेकिन एक खास उदेश्य से। उदेश्य भी ऐसा कि मन ही रंग जाता है। सुशील बताते हैं कि वे बहुत सारी छुट्टियों को इक्कट्ठा कर बुलेट लेकर देश के किसी हिस्से में निकल पड़ते हैं मीनाक्षी के संग घर-दिवार रंगने लगते हैं। उन्होंने कहा कि आमतौर पर वे छुट्टियों में रंग के अलावा दूसरा कोई काम नहीं करते हैं। लोगबाग सोशल मीडिया के जरिए उनसे संपर्क करत हैं और उन्हें अपने घरों, स्कूलों आदि में रंग करने बुलाते हैं। इस काम में इस जोड़ी को संतुष्टि मिलती है। उन्होंने कहा कि पेंटिग के लिए वे किसी से मांगते नहीं हैं। कोई रहने का इंतजाम कर देता है तो कोई बोजन आदि का।

श्रीनगर हो या फिर गोवा या पुणे। हर जगह यह जोड़ी बुलेट से पहुंच चुकी है। इस बार इनकी यात्रा खास इसलिए है कि ये बिहार आए हैं और वो भी गांव घुमने। पटना, जहानाबाद, वैशाली, मुज्जफरपुर होते हुए ये पूर्णियां पहुंचे हैं। यहां इन्होंने जहां शहर के कुछ स्कूलों में पेंटिग की वहीं उन्होंने इस दौरे का सबसे खास पड़ाव संथाल बस्ती है। जहां उन्हें काफी कुछ सीखने को मिल रहा है।  मीनाक्षी ने बताया कि उन्होंने यात्रा आरंभ करने से पहले ही योजना बना ली थी कि वे इस बार आदिवासियों के संग कुछ वक्त बिताएंगे ताकि वे समझ सकें कि आखिर उनकी पेंटिंग से कितना कुछ सीखा जा सकता है। बिहार के बाद वे झारंखड में आदिवासियों के कला से रूबरु होंगे।

पूर्णिया शहर में इन्होंने एक निजी स्कूल विद्या विहार और एक इजीनियरिंग कालेज में पेंटिग की। वहीं दूसरी ओर पूर्णिया जिले के चनका गांव के एक संथाली टोले में इस रंगरेज जोड़ी ने मिट्टी के दीवारों पर अपनी कला बिखेरी। यहां उनका अनुभव कई मायने में खास रहा। दरअसल संथाल टोले में मीनाक्षी ने फेवरिक रंग नहीं बल्कि देसी रंगों का प्रयोग किया। यहां इनका ब्रश भी देसी था। पटसन और लकड़ी के पतले टुकड़े की मदद से ब्रश बनाया गया था। मिट्टी के घरों को रंगने के बाद जे सुशील और मीनाक्षी ने कहा कि संथालों के साथ पेंटिग करना पढ़ाई करने जैसा है, इन लोगों से काफी कुछ नया सीखने को मिला।

इस अनोखे काम के बारे में जे सुशील ने कहा कि दरअसल मीनाक्षी को पेंटिंग का शौक है और उन्हें देश-दुनिया घूमने का। उन्होंने बताया कि स रंग यात्रा की शुरुआत मीनाक्षी के संग उन्होंने गोवा से की जिसके बाद उन्होंने ऑर्टोलॉग (http://artologue.in)  नाम से एक ब्लॉग बना लिया। इसके बाद तो ये दोनों लगातार घुमते ही हैं। पूणा, गोआ, बेंगलुरु, मंगलोर, होसूर, चेन्नई, दिल्ली, हरियाणा के शहर, चंडीगढ़, श्रीनगर, जम्मू  के बाद यह जोड़ी इन दिनों बिहार-झारखंड के शहर और गावों को रंग रही है। 

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