Friday, May 25, 2012

“न सोच, न खोज, उड़ जइहें जग है तोप…”


जीवन गीत है बस ताल से ताल मिलाते रहिए। गीत खोजना मानो जीवन में चांद और सूरज के बीच प्रकाश का कारोबार करना। सिनेमा इसी कारोबार के बीच-बीच में गीत की मिठी-नमकीन दुनिया बसाती है और हमारा मन उसी दुनिया में सो जाने की जिद करने लगती है। दरअसल इन दिनों बहुप्रतिक्षित फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के गीतों को सुनते वक्त ऐसा ही कुछ उल्टा-पुलटा, सीधा-टेढ़ा अनुभव हो रहा है।
अनुराग कश्यप की इस फिल्म में गीतों का जो स्वर है वह दरसअसल हिंदुस्तान का स्वर है। फिल्म और गीतों की समीक्षा लिखने की कला से सौ-फीसदी गंवार होते हुए भी अनुराग की इस अंचलमय कृति पर लिखने के लिए जी मचल उठा है। ताकि हम भी पीयूष मिश्रा की बोल में कह सकें- होनी और अनहोनी की परवाह किसे है मेरी जां, हद से ज्‍यादा ये ही होगा कि यहीं मर जाएंगे..

इक बगल मं चांद होगा..” गीत को पीयूष मिश्रा ने लिखा है और गाया भी है। उनकी आवाज में फकीरापन है। उन्हें सुनते हुए लगता है मानो वे गीत को गाते नहीं है, बल्कि बोलते हैं। उऩकी बोल में दम है। इक बगल में चांद होगा..” को लाखों बार सुनने का जी करता है क्योंकि इसमें मन की बात है। ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने हमें गुलाल में पागल बना दिया था, रुला दिया था।

अब जरा इसी लाइन को आप खुद बोलिए- हम मौत को सपना बना कर उठ खड़े होंगे यहीं, और होनी को ठेंगा दिखा कर खिलखिलाते जाएंगे..”  ठेंगा दिखाने की बात यूं कहना आसान नहीं है, इसके लिए जिगर चाहिए, जो पीयूष भाई के पास है।  पीयूष मिश्रा ने फिल्म में बेहतरीन अदाकारी भी की है। बकौल पीयूष मिश्रा- महाभारत के संजय की तरह मेरा किरदार है।

हम फिल्म के सिनेमाघर में टपकने का इंतजार कर रहे हैं ताकि हम भी उनके सुर में सुर मिला सकें।

फिल्म में पीयूष मिश्रा के गीत के बाद जिस बोल ने हमें सबसे अधिक तड़पाया है, वह है –
भूस के ढेर में राइ का दाना..रंग बिरंगा बैल सयाना. इसे वरुण ग्रोवर ने लिखा है। गीत के बोल हिंदुस्तानी रग को छू रही है। एकदम हमारी बोली-बानी की तरह और हम गीत में लोट-पोट हो जाते हैं।

अब देखिए न, जैसे ही कान में रंग-बिरंगा बैल की आवाज आती है तो मन झट से गाम पहुंच जाता है और हम अंचल-मय हो जाते हैं। धान की दौनी याद आने लगती है। बैल के गले में रंग-बिरंगी डोरी सीधे हमें अंचल पहुंचा देती है। हम वरुण ग्रोवर से मन से बंध जाते हैं और फट से ट्विटर पे जाकर टाइप कर आते हैं-
जिय्य वरुण बाबू.. कमाल कर दिए हो! भूस के ढेर में राई का दाना, रंग बिरंगा बैल सयाना... माटी में ..लोहा में काठी में..।

इसके ठीक बाद जिस गीत ने मन के तार के एसी-डीसी में जाकर मनमौजी की है, वह है-
आज दिल है मनमौजी..इस गीत के बोल के संग आवाज ने मन को बावरा बनाकर रख दिया है। इसमें बाल्टी भर कर, अरे नहीं बड़का टंकी भरकर प्रेम है, इतना कि कभी खत्म ही नहीं होगा। विरह से दूर दिल-ए-मनमौजी की बात है।

कैसे कर लूं बात आज की रात हलक में दिल हां होगा...खुला है बाजूबंद...आज हम गाएंगे प्रेम प्यार के गीत..जग को जलना होगा..बलम से मिलना होगा..। हम इन गीतों में मोहल्ले की अनगिनत प्रेम कहानियां खोजने लगते हैं तभी पता चलता है कि मन तो चिड़ैयां है भाई !

इसके अलावा भी ढेर सारे गीत हैं जो जुबां में चढ़कर धमाल मचा रहे हैं। वासेपुर का गैंग हमारे भीतर बवाल मचा रहा है। शुरुआत में तो खाली
जिय हो बिहार के लाला, जिय तू हजार साला.. मन को बहला रहा था लेकिन जैसे ही आंच तेज हुई तो वूमानिया से लेकर हंटर और कह के लूंगा नचाने-गवाने लगा हम फुलटूस आवार हो चले।

कुल मिलाकर बात यही है कि हम खोए हुए हैं वासेपुर के गीतों में। पेट्रोल आग लगाए..फर्क नहीं पड़ रहा है हमें। हम तो गीतों में खोएं हैं। "आज दिल मनमौजी..आज संभल के चलना होगा..आज हम गाएंगे... होनी को ठेंगा दिखा कर खिलखिलाते जाएंगे..तान खींचकर तानसेन कहलावेंगे...।

पुनश्च: जिय्य हो अनुराग बाबू..जिय्य

( सारे गीत इहां मौजूद हैं )

3 comments:

@Rohwit said...

Kamaaal ka post hai rajjja!

Mazaa aa gaya by God!

Ramakant Singh said...

BEAUTIFUL POST.SO NICE.

Abhishek Ojha said...

sun ke bataate hain :)