Thursday, December 08, 2011

फेसबुक पर हरियाली


यही तस्वीर दिखी फेसबुक पर
मुल्क में एकाएक इंटरनेट के तार उलझते दिखे। इंटरनेट का समाज ऊर्फ सोशल नेटवर्किंग वेब साइट पर हुजर-ए-आला के सिपहसलार जैसे बरस पड़े थे। मंत्री जी ऊर्फ कपिल मुनी फेसबुक, ट्विटर आदि जगहों पर सेंसर लागू करने के लिए न जाने कैसी कैसी बैठकें कर रहे थे। उधर, आपका कथावाचक फैज अहमद फैज को गुनगुना रहा था- बोल कि लब आजाद हैं तेरे..।

वह फेसबुक-ट्विटर के बीच पसरे मोहल्ले में फेरी लगा रहा था, तभी फेसबुक के आंगन में उसे हरियाली दिखी।
हमारे लिए हरियाली का सीधा और सरल मतलब खेत से होता है। आपका कथावाचक हरियाली को लेकर तमाम तरह के विशेषणों के पीछे मगजमारी न कर सीधे खेत को निहारने लगता है।

तो कद्रदानों, बात यह है कि फेसबुकिया और असल में हमारे खास दोस्त आशीष कुमार अंशु ने सामाजिक संजाल ऊर्फ फेसबुक पर खेत में पसरी हरियाली का एक तस्वीर चस्पा किया। अपनी बात शुरु करने से पहले जिसके जरिए बात हो रही है, उनके बारे में बताता चलूं कि अंशु भाई मेरे लिए एक घुम्मकड़ प्राणी हैं। वे खूब घुमते हैं और खूब लिखते भी हैं।

अंशु भाई ने फेसबुक पर फोटो चस्पा करते हुए लिखा-  पूसा के तीन कृषि वैज्ञानिकों की वजह से यह संभव हुआ कि बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश) में एक किसान ने एक पौधा लगाया जो देखने में तो केले के पौधे की नजर आता है लेकिन वह केला नहीं है. थोडा बताइए कृषि वैज्ञानिक डॉ छिल्लर, डॉ डबास और डॉ परिहार की मदद से बुलंदशहर के किसान ने जो खेती की है, वह वास्तव में किस पौधे की खेती है???? कोई है फेसबुक पर कृषि जानकार...।

अंशु भाई का सवाल बस इतना ही था लेकिन उत्तर के फेर में कथावाचक का मानस आठ सौ किलोमीटर दूर गाम पहुंच गया। पोखर के चारों तरफ हर बरसात में उगते हरे रंग के कोंपल उसे याद आने लगे। जंगल में उग आने वाले हल्दी के उन्नत संस्करण की तस्वीर अंशु भाई ने लगाई थी लेकिन एक शाश्वत हरियाली कथावाचक के मन में फैल गई, जिसमें हल्दी के पत्ते की खुश्बू आ रही थी।

उसे अगस्त-सितंबर का महीना याद आ रहा था, जब बन हल्दी (वन-हल्दी) यौवन के चरम पर रहती है। उसके पास से गुजरते वक्त उसकी सुगंध शरीर में समा जाती है। पत्ते हाथ से लग जाएं तो उसकी पहुंच नाक तक पहुंच जाती है।


दरअसल, फेसबुक पर जब ऐसे सवाल पूछे जाते हैं तो मन साधो-साधो करने लगता है। आखिर कौन पूछता है किसानों की बात? जबकि सच्चाई है कि किसानी की दुनिया के ही एक कोने में हम सब पांव फैलाए जिंदगी गुजारते हैं। लेकिन उसके बारे में बात करने से पहले इधर-उधर देखने लगते हैं। अंचल की दुनिया, हमें खुद को समझने का मौका देती है लेकिन अफसोस हम उस दुनिया से कोसों दूर भागने लगे हैं।


ऐसे में अंशु भाई के माध्यम से फेसबुक पर लगाया गया हल्दी का बाग हमारे दिल को बाग-बाग कर रहा था। आज सुबह उठकर एक बार फिर उनके प्रोफाइल में हल्दी के लहलहाते पौधे देखने लगा और एक पल के लिए अपने पोखर के महार (पोखर के चारों तरफ का इलाका) पर विचरने लगा। 

(यही वजह है कि जब कपिल सिब्बल साब इस दुनिया पर सेंसर का ताला लटकाने की बात करते हैं तो मुख से अजीब-अजीब तरह के शब्द निकलने लगते हैं। आखिर मन की बात करने से सरकार को गुस्सा क्यों आता है?) 

2 comments:

kopal goel said...

बिल्कूल सही कहा आपने आकिर सरकार को जनता के मन की बाते सुनकर उनके मन मे हलचल क्यों मच जाती है??जनता को पूरा हक है कि वो अपनी बाते एक दूसरे तक पहूचाये।

संजय भास्‍कर said...

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