Sunday, May 01, 2011

सुना है मेरे शहर में भी अपार्टमेंट बन गए हैं

सुना है मेरे शहर में भी अपार्टमेंट बन गए हैं, 
सुना है कि मोहल्ले की सबसे गुलजार मैदान में,
ऊंची इमारतें बन गई हैं।
सुना है शाम में लोग अब पड़ोसी के यहां नहीं जाते हैं, 
सुना है लोग अब शाम मॉल के कॉफी-कैफे डे में गुजारते हैं।
सुना है मुमताज चाची भी अब अपार्टमेंट में रहने लगी हैं, 
चाची ने अपने अहाते वाले घर को बेच दिया है।
सुना है उसी अहाते में वो ऊंची इमारत बनी है, 
सुना है अब शहर का मोहल्ला, सोसाइटी बन गया है।
मैं अब अपने शहर को याद करता हूं, 
दिल के भीतर दुबका पड़ा शहर, 
अब मेट्रो बनने को तड़प रहा था।
अरे, सुना है गांव भी बदल गया है अब,
चलो न, अबकी गांव चलते हैं।
जाते वक्त शहर का अपार्टमेंट भी  देख आएंगे, 
मुमताज चाची से भी मिल आएंगे।
मतलब फिर लौटकर यहीं आ जाना है,
जहां से कभी चले थे...। 
याद आने लगता है यह गीत-
जीवन की राहों में आना या जाना बताके नहीं होता है,
जाते कहीं हैं मगर जानते ना कि आना वहीं होता है..
(अंतिम दो पंक्ति पीयूष मिश्रा के गीत (फिल्म गुलाल) से उधार)

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