Sunday, April 24, 2011

सफेद मन में फिर से काला धब्बा उभर आया...

कई दिनों बाद रात में नींद से मुलाकात हुई। नींद ने बताया कि उसे अंधेरे से नहीं मन के उजाले से प्यार है। फिर उसने सपने की बात शुरु की। बताया कि सपने वह नहीं बनाता, सपने मन के उजाले के कैनवास पर तैयार किए जाते हैं, वह तो बस उसमें रंग डालता है।

अच्छे सपने को वह सतरंगी रंगों से भर देता है वहीं बुरे सपने को काले रंग से भर देता है। रात में नींद ने मुझे चलना सीखाया। वह मुझे एक मैदान दिखाने की जिद करने लगा। मैंने उसकी बात मान ली। नींद ने बताया कि यह दुनिया मैदान है, ऊंचा-नीचा, उबर-खाबड़ सबकुछ इसी मैदान में मिल जाता है।

वह मुझे तेज कदम बढ़ाने से पहले चार बार सोचने की सलाह दे रहा था। नींद ने कहा कि आंखों को खोले रखना, गिरने का डर कम रहता है। नींद ने आज पहली बार मुझे अपने मन से मुलाकात करवाई। मेरा मन सफेद अड़हूल फूल की तरह सफेद था, लेकिन उसके बीच में एक काला सा धब्बा दिख रहा था।

मैंने नींद से पूछा कि क्या मेरा मन मुझसे बात नहीं करेगा ?  नींद ने कहा, क्या पूछना है?  मैंने कहा कि सफेद मन के बीच में यह काला धब्बा क्या है?  नींद ने बताया कि यह तुम्हारे मन का बनावटी हिस्सा है, जिसे तुम दिखावे के लिए सहेजे हुए हो, उसे फेंक दो, सब सफेद नजर आएगा।

मैंने नींद की बात मान ली, और सच में मेरा मन सफेद हो गया। फिर मन ने भी मुझे टोका। नींद ने कहा, ये मैदान देख रहे हो ना, यहां सब परतें खुल जाती है, आज तुमने अपने मन की परतों को खोला है.... तबतक सुबह हो चुकी थी, सफेद मन में फिर से काला धब्बा उभर आया था.. मन ने टोकना छोड़ दिया..। 

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