आज फणीश्वर नाथ रेणु के इस रिपोर्ट का आनंद लें। रेणु की यह रिपोर्ट 7 मई 1967 के दिनमान के चरचे और चरखे स्तंभ में प्रकाशित हुई थी। आज एक बार फिर आनंद लें।
गिरीन्द्र
1912 में लॉर्ड हार्डिंग अपनी पत्नी के साथ बिहार पधारे थे। उसी पुण्य अवसर की स्मृति में उस समय के लेफ्टिनेंट गर्वनर सर चार्ल्स बेली और महाराजा रामेश्वर सिंह (दरभंगा नरेश) के उद्योग से 1915 में पटना में लॉर्ड हार्डिंग की प्रतिमा की स्थापना की गई थी। इस प्रतिमा के शिल्पी लंदन निवासी हैंपटन को इसके पारिश्रमिक में 4,000 पौंड मिले थे।
12 फुट ऊंची वेदी पर इसकी स्थापना हुई। उसके आसपास की भूमि को घेरकर 70,100 रुपये की लागत से एक उद्यान बनाया गया था, जिसका नाम दिया गया – हार्डिंग पार्क। 12 अप्रैल 1967 को बिहार की गैर कांग्रेसी सरकार के संयुक्त समाजावदी मंत्री भोला सिंह ने इस ऐतिहासिक मूर्ति (जो हमारी गुलामी के दिनों की यादगार भी थी..) हटाकर जादू घर में डलवा दिया। और, यह शुभ कर्म उसी व्यक्ति के हाथ से संपन्न कराया गया जिसे संयुक्त समाजवादी पार्टी के अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के समय इस मूर्ति का अंग भंग करने की चेष्ठा के अपराध में दंडित किया गया।
5 टन वजन की कांसे की विशाल मूर्ति जब ट्रक पर लदकर जादू घर की ओर चली, उपस्थित जनता ने विदाई में तरह-तरह के नारे लगाए, जिसमें एक नया नारा था- स्वेतलाना को वापस बुलाओ।
सड़क से गुजरती सवारियों पर बैठे लोग अचरज से सबकुछ देख रहे थे। एक देहाती ने रिक्शेवाले से पूछा, भैया यह किसकी मूरत थी...रिक्शाचालक ने तुरंत जवाब दिया- अरे, यह भी नहीं मालूम.. बहुत पुराना कांगरेसी लीडर था और था कृष्णवल्लभ सहाय का आदमी.....
3 comments:
भाई जी कहाँ कहाँ से अच्छी चीजें निकाल लाते हो। शुक्रिया।
आभार रेणू जी की इस रिपोर्ट का.
रेणू जी की रचना - देखते ही क्लिक कर दिया। अच्छा लगा।
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