Tuesday, January 22, 2008

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म सियालकोट, पाकिस्तान में हुआ था ।
वे उर्दू के बहुत ही जाने माने कवि थे । आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊँचाई दी । इसी समय उर्दू के काव्यगगन में साहीर, ईकबाल, कैफ़ि, फ़िराक़ के जैसे और भी सितारे चमक रहे थे । वे अंग्रेजी तथा अरबी में MA करने के बाद भी कबितायें उर्दू में ही लिखते थे ।
1942 से लेकर 1947 तक वे सेना मे थे । लियाकत अली खाँ की सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में वे १९५१‍ - १९५५ तक कैद में रहे । इसी दौरान लिखी गई कविताएँ बाद में बहुत लोकप्रिय हुईं और "दस्ते सबा" तथा "जिंदानामा" नाम से प्रकाशित किया गया । बाद में वे 1962 तक लाहोर में पाकिस्तान आर्टस काउनसिल मे रहे । 1963 में उनको सोभियत रशिया से लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया गया । भारत के साथ 1965 के युद्ध के समये वे सूचना मंत्रक मे काम किये ।




बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक् तेरी है
देख के आहंगर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने
फैला हर एक ज़न्जीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है
जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहने है कह ले


साभार- कविता कोश

1 comment:

जेपी नारायण said...

बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
फैज को पढ़ा, पहले भी कई बार पढ़ चुका हूं। ये उनकी मशहूर लाइनें हैं, फिर भी उतनी ही शिद्दत से।
बधाई.