Saturday, August 18, 2007

सुलभ का एक और कारनामा


-एक नयी तकनीक की गयी विकसित
-इससे पहले टू-पिट शौचालय तकनीक जिसने पूरे विश्व में प्रसिद्धि पायी


सफाई के क्षेत्र में सुलभ ने शुरू से हीं कई बड़े कार्य किए हैं। एक ब्रांड के तौर पर सुलभ का कार्य इन दिनों आगे की ओर बढ़ रहा है। न केवल भारत बल्कि विदेशों में यह संस्था बढ़-चढ़ कर काम कर रही है। सफाई के क्षेत्र में पूरी दुनिया में टॉप सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाजेशन ने एक बार फिर सफाई के क्षेत्र में एक बड़ा कारनामा किया है।
सुलभ ने अपनी नयी तकनीक के बदौलत गंदी होती जा रही यमुना-गंगा नदी के जल को साफ करने की बात कही है। सुलभ के डॉ. विन्देश्वर पाठक ने बताया कि यह नयी तकनालाजी न केवल नदियों को प्रदूषित होने से बचाएगी, अपितु कुछ दूरी तक रहने वाले लोगों के लिए पानी की समस्या का भी समाधान करेगी।
सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता और इस नयी तकनीक को विकसित करने वाले डॉ. पाठक का कहना है कि हमारी रिसर्च टीम ने तारकोल आधारित जिस अल्ट्रा वॉयलेट वाटर फिल्टर का विकास किया है वह मानव मल से चलने वाली बॉयोगैस प्लांट के अवशिष्ट और अपजल का शोधन करती है। यह शोधित जल रंगहीन, गंधहीन और पैथोजेन से मुक्त होता है।
डॉ. पाठक ने आगे बताया कि इस जल का उपयोग आप मछली पालन में कर सकते हैं, वहीं बागवानी में भी सिंचाई के लिए इस जल का आराम से इस्तेमाल किया जा सकता है। अल्ट्रा वॉयलेट वाटर फिल्टर से एकत्रित जल का आप कई तरह से उपयोग में ला सकते हैं। मसलन इस प्रक्रिया से जमा किए गये जल को तालाब या नदी में छोड़ा जा सकता है। डॉ. पाठक के अनुसार आप यकिन कर सकते हैं कि इससे कोई प्रदूषण नहीं होगा। खासकर इस विधि से गंगा और यमुना जैसी नदियों को प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है।
सुलभ की इस नयी तकनीक को लेकर डॉ. पाठक काफी प्रसन्न नजर आए। गौरतलब है कि 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने गंगा कार्ययोजना नाम से एक महत्वाकांक्षी योजना का श्रीगणेश किया था। सुलभ की इस नयी तकनीक को उसी से जोड़ कर देखा जा सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस जल में कई प्रकार के सूक्ष्मतम पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि यह तकनीक भी सुलभ के टू-पिट शौचालय की तरह लोकप्रियता हासिल कर पाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ग्रामीण विकास मंत्रालय सुलभ के इस नये कारनामे को अपने निर्मल-ग्राम योजना में शामिल करता है। यह सच है कि यदि इस तकनीक का उपयोग ग्रामीण इलाके में युद्द स्तर पर किया जाए तो कई फायदे एक साथ नजर आ सकते हैं।

सुलभ के विषय में और अधिक जानकारी के लिए लॉग-ऑन कर सकते हैं-

www.sulabhinternational.org
www.sulabhtoiletmuseum.org

या आप ई-मेल कर सकते हैं-

Sulabh1@nde.vsnl.net.in

Sulabh2@nde.vsnl.net.in

5 comments:

Sanjay Tiwari said...

अच्छी जानकारी. गंगा-यमुना की गंदगी बहुत बड़ा व्यवसाय भी है इसे नहीं भूलना चाहिए.

अनुनाद सिंह said...

डा. पाठक जैसी परिष्कृत सोच वाले उद्यमी ही भारत की आशा हैं, भविष्य हैं।

किसी ने खूब कहा है:
गंदगी कोई गन्दगी नहीं है, यह केवल गलत जगह पर पड़ी हुई उपयोगी वस्तु है।

हरिराम said...

भारत भ्रमण करने आनेवाले विदेशियों की अक्सर टिप्पणी होती है -- "भारतीय संस्कृति = रास्ते के किनारे टट्टी बैठना"

'सुलभ' भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार कर रहा है, इस महान् कार्य हेतु पाठक जी को नमन्!

Arun Arora said...

पाठक जी ने शौचालयो की जो सुलभ व्यवस्था की है वह अब शब्दो कॊ परिधी से बाहर की बात है..

Udan Tashtari said...

अच्छी जानकारी. जानकर खुशी हुई कि इस दिशा में कार्य तो हो रहा है कम से कम.