Tuesday, August 28, 2007

राखी पर एक अनमोल उपहार- बहन दिया भाई को किडनी उपहार में


एक बहन ने ऱाखी के शुभ अवसर पर अपने भाई को एक ऐसा उपहार दिया, जो सचमुच में अलग है।
छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक अस्पताल है- Modern medical Institute यहां के ट्राउमा यूनिट के बेड नं. 5 पर एक भाई को राखी के अवसर पर एक नई जिंदगी नसीब हुई है। आप इसे पुर्नजनम कह सकते हैं।

असीम कुमार सिंहा नाम के इस भाई को बहन अनुमिता ने किडनी उपहार स्वरूप भेंट की है। 36 वर्षीय अनुमिता अपने भाई से बेहद प्यार करती है। बकौल अनुमिता-"असीम हमारा प्यारा भाई है, हम चार बहने हैं और असीम हमारा इकलौता भाई। हम उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं।"

दरअसल असीम अपने दोनों किडनी खराब हो जाने के कारण जिंदगी और मौत से जूझ रहा था। बहन क्या करती, राखी के शुभ मौके पर इससे अच्छा उसके लिए और क्या तौहफा हो सकता था...................................

ऱाखी के दिन अनुमिता अपने भाई के बगल के बेड पर लेटी है। रविवार रात डॉक्टरों ने असीम के शरीर मे अनुमिता की किडनी प्रत्यारोपित कर हीं दी। बहन अनुमिता बेहद खुश नजर आ रही थी। सुबह उसने अपने भाई के कलाई में राखी बांधी तो अस्पताल के लोगों की आंखे भी नम हो गयी। बहन ने न केवल कलाई में राखी बांधी है, बल्कि उसने अपने भाई को एक नई जिंदगी भी दी है।

असीम के स्वास्थ में सुधार हो रहा है। राखी के इस पावन अवसर यह कार्य सचमुच काबिल-ए- तारिफ है....
बहन को सलाम...

8 comments:

ऋतेश पाठक said...

काबिले तारीफ काम किया है अखबारी दुनिया के जीव ने. ऐसे अद्वितीय उपहार को खोज निकाला.
सचमुच लाजबाव.

Anonymous said...

आपने फिर एक अच्छी खबर सुनायी है.
लगे रहें और ऐसी हीं बात सुनाते रहें..
शुक्रिया.
आकांक्षा
कोलकाता

mamta said...

वाकई ये काबिले तारीफ है। असीम और अनुमिता को शुभकामनायें।

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी खबर सुनाने का आभार.

Sanjeet Tripathi said...

सलाम इस बहन को!

साधुवाद इस खबर को यहां डालने के लिए!!

Rajeev (राजीव) said...

भाई और बहन दोनों को स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनाएं और बहन अनुमिता को अपने प्यार और त्याग के लिये शत-शत नमन् ।

ghughutibasuti said...

सही में बहुत अच्छी खबर है । मनुष्य एक गुर्दे से भी काफी आराम से जी सकता है । बहन को ये बात समझ आ गई । आपसे अनुरोध है कि अगली राखी तक किसी ऐसे भाई को खोज लाएँ जिसने ऐसा ही उपहार अपनी बहन को दिया हो ।
प्रतीक्षा में
घुघूती बासूती

Anonymous said...

आह.... धन्य है व्यक्तिगत स्वार्थ से लथपथ रिश्तों की संवेदना से रहित होते जा रहे इस संसार में अभी भी बहुत कुछ बांकी है...