Thursday, March 08, 2007

क्या धंधा बंद होने पर भूखे मरें..? या सड्कों पर भीख मांगे..?


दर्-दर की ठोकरें खाने वाली वृद्ध वेश्याओं की आपबीती में आज आप रू-ब्-रू होंगे मुन्नी बेगम से-

"मेरा नाम मुन्नी बाई नहीं, मुन्नी बेगम है. २० साल पहले मैं धंधा करती थी तब मेरा नाम मुन्नी बाई था. मैने यहां कोठे पर सालों तक् पेट पाला अब शरीर का आकर्षण खत्म होने पर कोई मर्द नहीं आता."

मुन्नी बेगम मूलतः उत्तर प्रदेश के रामपुर की रहने वाली है. रामपुर के एक पूर्व विधायक के भाई की पत्नी मुन्नी बेगम ने कभी सोचा भी नही होगा कि उसे उस कोने मे रहना पडेगा जिसे सभ्य समाज हिकारत की नजर से देखता है. लेकिन वहां चोरी छिपे अपनी प्यास बुझाने जरूर जाता है. पति के छोड्ने के बाद मुन्नी बेगम को मायके का भी सहारा न मिला. किसी के घर में पनाह न मिलते देख उसने दिल्ली का रूख किया. यहां काम की तलाश के दौरान किसी ने उसकी मदद नही की,उल्टे उसके जिस्म पे निगाह ही डाली. वो अंततः दिल्ली के कोठे पे पहुंची. .जहां उसे कुछ वर्षो के लिए पनाह और भोजन मिला. जवानी ढलते ही मुन्नी बाई फिर से सड्को पे आ गयी.
जिन्दगी में दस साल के ठहराव के बाद वो फिर एक बार भटकने को मजबूर है.

अब मुन्नी बाई के सवाल पर गौर फरमाऐं....

"२० सालों तक काम करने के बाद ये औरतें आखिर कहां जायें? क्या धंधा बंद होने पर भूखे मरें..? या सड्कों पर भीख मांगे..?
सरकार आम गरीब की तरह हमें क्यों नही देखती है..?

4 comments:

विजय said...

सही है जनाब... इन्हें समाज के बड़े पगड़ी वाले हिकारत भरी नजरों से तो देखते हैं मगर प्यास बुझाने के लिए बेहिचक इनका सहारा लेते हैं... जीबी रोड न सही, कहीं और ही और जीबी रोड क्यों नहीं...
कब दिखेगा कुछ बदलाव का मंजर...??
आपके अगले पडाव का भी इंतजार रहेगा जहां आप किसी अन्य की दास्तान रखेंगे...

अभय तिवारी said...

अफ़सोस की बात यही है कि मुन्नी बेग़म का सोचना ग़लत है..सरकार उनको भी आम ग़रीबों की ही तरह देखती है..जितनी उदासीनता इस देश के बहुसंख्यक निम्न वर्ग के प्रति है, उतनी ही मुन्नी बेग़म के प्रति भी..इस सरकार को चलाने वाले कुछ इस देश के कार्पोरेशन्स हैं कुछ शेष दुनिया के..

ghughutibasuti said...

दुख हुआ मुन्नी बेगम के बारे में पढ़कर । किन्तु सरकार की ओर मुँह बाये देखने से काम नहीं चलेगा । कोई रोजगार बीमा जेसा कदम उठाना पड़ेगा । जहाँ जब तक मनुष्य कमाता है कमाई का एक भाग जमा करवाता रहे । जब रोजगार न रहे और नया न मिले तो नया मिलने तक कुछ सहारा हो जाए । यदि हर वह व्यक्ति जो बेरोजगार होने से डरता है आय का कुछ भाग इसमें जमा करवाए तो करोड़ों लोगों का पैसा मिलकर काफी हो सकता है ।
यदि सरकार से सहायता की आशा करते हैं तो कर में इतनी अधिक वृद्धि होगी कि झेलना कठिन होगा । वैसे ही कर कितने लोग देते हैं सो देने वालों पर और मार पड़ेगी ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

Bahut dukh hua ye kahkarus peeda ko main nahi samajh sakti jo Munni Bai ya un jasi saikdon mahilaawon ne jheli hai.. bas sharm aati hai apani wiwshataa par .. aur taras aata hai samaaj ke in haalaton par.. kya inhe haq nahi ek aam insaan ki tarah jeene ka.. ye koi napkin ya tissue paper to nahi ki istemaal kiya aur fenk diya.. ye bhi insan h ham aur aap jaise.. inhe bhi taklif hoti hai bhokh lagti h.. dard hota h.. ye sirf kyun deh ki pyaas bujhane ka ek jariya matr hain.. kyun nahi inke wikaas ko ham kuchh karte... saari aashayen sarkar se. kyaa aap aur hum kuchh nahi kar sakte. kahin na kahin inhi ki wajah se mahilaayen , bahu betiyan surakshit hai samaaj mein.. ye Waishyaa kahe jaane wala warg na hota to samaaj ki tasweer kuchh aur hi hoti...