Friday, October 27, 2006

बिस्‍मिल्‍ला की शहनाई.... (नरेश शांडिल्‍य की कविता)


नरेश शांडिल्‍य की कविता

——बिस्‍मिल्‍ला की शहनाई

बिस्मिल्ला की शहनाई है
या वसंत की अंगड़ाई है
इक कमसिन के ठुमके जैसी
रुन-झुन हिलते झुमके जैसी
इक पतंग के तुनके जैसी
नखरीली-सी उनके जैसी
कभी बहकती कभी संभलती
छजती चढती गली उतरती
रस-रस भीगे मस्‍त फाग-सी
धीरे-धीरे पींग बढ़ाती
झुकी हुई इक अमराई है
बिस्मिल्ला की शहनाई है
…………………………
………………………॥
मधुबन में कान्हा की आहट
भीड़ बीच इक तनहाई है
बिस्मिल्ला की शहनाई है

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