Tuesday, October 24, 2006

सरोदवादक उस्ताद अमजद अली ख़ान


भारत के प्रसिद्ध सरोदवादक उस्ताद अमजद अली ख़ान के अनुसार इस दौर में लोग संगीत को आँखों से सुन रहे हैं, कानों से नहीं.
उस्ताद अमजद अली ख़ान ने कहा,"आज के दौर में भारतीय संगीत पूरी तरह से पश्चिमी देशों से प्रभावित नज़र आता है जिसकी वजह से धीरे-धीरे हम अपनी असल पहचान खोते जा रहे हैं."
उनके अनुसार 'वेस्ट्रानाइज़ेशन' के कारण ही 'आज हमें अपनी तहज़ीब पर नाज़ नहीं रहा.' वे कहते हैं कि अगर किसी हिंदुस्तानी या फिर पाकिस्तानी के साथ मुलाक़ात के बाद ऐसा महसूस हो कि किसी अंग्रेज़ से बातचीत कर रहे हैं तो इससे ज़्यादा अफ़सोस की कोई बात नहीं हो सकती है.
उस्ताद अमजद अली ख़ान का मानना है कि पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन 'उसकी ज़रूरत हमारे संगीत में बिल्कुल नहीं है.'
छह बरस की उम्र से सरोद बजाने की शुरुआत करने वाले अमजद अली ख़ान पिछले 50 साल से ज़्यादा समय से सरोद बजा रहे हैं.
उनके अनुसार शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान संगीत से ज़्यादा अदब पर ज़ोर दिया जाता है इसीलिए किसी भी व्यक्ति को बेहतरीन संगीतकार बनने के लिए संगीत की शिक्षा प्राप्त करना बेहद ज़रूरी है.
प्रसिद्ध सरोदवादक के अनुसार भारत में बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय में शास्त्रीय संगीत और गायकी की समझ वाले लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा है और उन लोगों के सामने साज़ बजाने का मज़ा अलग ही होता है.
औलाद का हक़
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन 'उसकी ज़रूरत हमारे संगीत में बिल्कुल नहीं है

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उस्ताद अमजद अली ख़ान
पिछली पाँच पीढ़ियों से ख़ानदान की परंपरा को आगे बढ़ाने के बाद अब उस्ताद अमजद अली ख़ान के दोनों बेटे अमन और अयान इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
अपने दोनों बेटों की सरोद में दिलचस्पी का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कहते हैं, "शुरू से ही यही कोशिश थी कि दोनों बच्चों का रूझान अच्छे संगीत की तरफ हो और वह ही हुआ."
उनका मानना है कि उनके बेटों की कामयाबी में सबसे मुख्य किरदार उनकी माँ सुभालक्ष्मी का है क्योंकि हर इंसान का 'पहला गुरू' उसकी माँ होती है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या शिक्षा देते समय उन्होंने अपने अन्य शिष्यों से किसी तरह का अन्याय किया, तो उनका कहना था कि मंजिल पर पहुँचाने वाला ऊपर वाला है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह ख़ुशबू को कोई छिपा नहीं सकता उसी तरह बदबू भी छिप नहीं सकती और जो 'शागिर्द अच्छा होगा उसे रोका नहीं जा सकता.'
उनका ये भी कहना था कि औलाद को ये हक़ जन्म से प्राप्त होता है कि वह अपने माता-पिता से प्रशिक्षण ले और इस हक़ को कोई छीन नहीं सकता.

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