Sunday, December 06, 2020

रविवार की पाती, राहुल कुमार के नाम

गाम - घर करते हुए हम अक्सर यह सोचते हैं कि बदलाव की हवा हर बार गाम की गली, पगडंडी, खेत - खलिहान में सबसे अलग अंदाज़ में महसूस की जा सकती है। कई लोग हैं जो इस बदलाव के वाहक हैं या फिर उस हवा के गवाह ! 
हम जमीन से जुड़े लोग जब भी बदलाव की बात करते हैं, सवाल जरूर पूछते है। सवाल पूछना मना नहीं है, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। हम सूबा बिहार के पूर्णिया जिला से आते हैं, जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि यहां की पानी में ही दोष है, बीमारियों का घर। फिर 1934 के भूकम्प के बाद पानी में भी बदलाव आता है और धीरे धीरे सब में बदलाव आने लगता है। लोगबाग बाहर से इस जिले में बसने लगते हैं। लेकिन इसके बावजूद यहां के लिए मैथिली में एक कहावत प्रचलित ही रह गई है - " जहर नै खाऊ, माहुर नै खाऊ , मरबाक होय त पुरैनिया आऊ " 

लेकिन वक्त के संग यह इलाका भी बदला। लोग बदले, कुछ अधिकारी आए जिन्होंने इस इलाके के रंग में रंगे लोगों के जीवन को सतरंगी बनाने की भरसक कोशिश की। 

देश के पुराने जिले में एक पूर्णिया ने डूकरेल, बुकानन , ओ मैली जैसे बदलाव के वाहकों को देखा है। आईएएस अधिकारी आर एस शर्मा जैसे लोगों को पूर्णिया ने महसूस किया है, जिन्होंने पूर्णिया को रचा। 

कोई भी जिला अपने जिलाधिकारी की वजह से भी याद किया जा सकता है। यह सच है कि अपने कामकाज से यह महत्वपूर्ण पद किसी भी इलाके को बदल सकता है। आज यह सब लिखने की वजह यह दो तस्वीर है। 
जिला के कार्यालय से निकलकर जब जिलाधिकारी गाम की गली में पहुंचते हैं तो सिस्टम पर भरोसा बढ़ ही जाता है। 

जब जिला के आला अधिकारी उस अंतिम घर के लोग से मिलते हैं तो लगता है बदलाव की हवा बह रही है। हम आलोचना कर सकते हैं , सवाल उठा सकते हैं लेकिन इन सबके संग यदि कुछ अच्छा हो रहा है, जिससे किसी के जीवन में बदलाव दिख रहा है, तो उसकी तारीफ़ भी होनी चाहिए।

सबकुछ इस पर सबसे अधिक निर्भर करता है कि हमारा वर्तमान कैसा है। गांव में जब जिलाधिकारी अचानक पहुंचे और किसी बस्ती में उस एक व्यक्ति से बात करें और पूछें कि ' आप तक जो सरकारी योजना पहुंची है, उसकी हालत क्या है ' तो यकीन मानिए उस व्यक्ति का भरोसा जरूर बढ़ जाता है।

जिला पूर्णिया के गाम घर तक अक्सर पहुंचने वाले जिलाधिकारी राहुल कुमार की तारीफ़ तो करनी ही चाहिए। वह अक्सर निकल जाते हैं गांव की ओर। 
खासकर ऐसे वक्त में जब दूरी बढ़ने लगी है, ऐसे समय में जिला मुख्यालय से सुदूर इलाकों में पहुंचकर लोगों से मिलना, उनके सवालों को सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

राहुल कुमार की इस तरह की तस्वीर जब भी सामने आती है तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ' लीक पर वे चलें ' की यह पंक्ति गुनगुनाने लगता हूं :
 
"साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट,
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।"

2 comments:

Ravi Kumar said...

बिल्कुल सत्य कहा आपने सर जब कोई नेक कार्य करता है तब उनकी तारीफ की कसीदें अवश्य गढ़नी चाहिए। सचमुच जब कोई जिलाधिकारी वातानुकूलित कमरे से बाहर होकर किसी गांव का दौरा करते हैं तब व्यक्ति सिस्टम पर विश्वास कायम हो जाता है और गांव के लोगों में में एक सन्देश -सा जाता है कि कोई तो अधिकारी है जो हमलोगों की परवाह करते हैं।
राहुल सर को इस नेक कार्य के लिए विशेष धन्यवाद।।।।।।

सुशील कुमार जोशी said...

साधुवाद के पात्र।