Saturday, August 15, 2020

पापा की बेटी #GunjanSaxenaTheKargilGirl

मेरा घर बिहार के पूर्णिया जिला में है, जहां से दार्जिलिंग नजदीक है। वहां की चायपत्ती बहुत मशहूर है। जो चाय के शौकीन होते हैं, वहां की लंबी पत्ती वाली चाय जरूर लाते हैं। इस चाय को जितना धीरे धीरे आप पीएंगे, स्वाद उतना ही बढ़ता जाएगा। आज गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल देखते वक्त दार्जलिंग की उसी चाय का  अहसास हुआ। 

यह फिल्म पंकज त्रिपाठी और जाह्नवी कपूर के नाम है। इन दोनों की आंखें बोलती है। इस फिल्म में, दृश्य - संवाद सबकुछ मन के करीब, कोई ताम - झाम नहीं, बस आहिस्ता आहिस्ता चलती फिल्म..

कबीर की एक पाती है -
"सहज सहज सब कोई कहै,
सहज न चीन्हैं कोय |
जिन सहजै विषया तजै,
सहज कहावै सोय || "

इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी जी का किरदार कबीर के इसी ' सहज ' शब्द का सटीक उदाहरण है। यह फिल्म एक पिता और बेटी के ख़ास रिश्ते को परदे पर दिखाने में कामयाब रही है। अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने अपने सहज अभिनय से गुंजन के पिता के रोल को यादगार बना दिया।

पिता की सहजता क्या होती है, उसे पंकज त्रिपाठी ने पेंटिंग की तरह पर्दे पर उतारा है, एकदम आहिस्ता - आहिस्ता! फिल्म का एक दृश्य है,  जहां गुंजन को एयरफोर्स का एग्जाम पास करने के लिए वजन घटाना होता है। ऐसे में पंकज त्रिपाठी यानी गुंजन के पिता अभिनेत्री रेखा को उसकी प्रेरणा बनाते हैं। वो अद्भुत दृश्य है।

वहीं जब गुंजन हताश होकर घर आती है तो लेक्चर देने की बजाय उसके पिता  उसे रसोई में ले जाकर ज़िन्दगी के आटे दाल का भाव बताते हैं। 

बेटी को मन की करने की आजादी देने का एक दृश्य है, उसका यह संवाद मन में बैठ गया है - मां पूछती है,  "अच्छा हुआ गुंजू मान गई... मान गई न?” तो पापा यानी पंकज त्रिपाठी  कहते हैं – “नहीं, मैं मान गया..”

इस फिल्म में गुंजन की दोस्त मन्नू  का छोटा किरदार भी बड़ा लगता है। वह ताजी हवा की तरह स्क्रीन पर आती है, नेगेटिव तो एकदम नहीं, जीवन में केवल और केवल पोजटिव। एक दृश्य में वह कहती है : "माधुरी बन न सकी तो क्या, माधुरी दिख तो रही हूं!”

आप इस फिल्म को ध्यान से देखेंगे तो एक छोटे से दृश्य में देशभक्ति की व्याख्या मिलेगी। एक रात गुंजन अपने पिता को जगाती है और पूछती है 
 – “पापा, एयरफोर्स में ऐसे कैडेट्स होने चाहिए जिनमें देशभक्ति हो। मुझे तो बस   प्लेन उड़ाना है। ये ख़्वाब पूरा करने के चक्कर में, मैं देश के साथ गद्दारी तो नहीं कर रही हूं?”

इस सवाल पर पिता का जवाब हम सभी को सुनना चाहिए और याद भी रखना चाहिए। पंकज त्रिपाठी पहले बेटी से पूछते हैं – “गद्दारी का विपरीत क्या होता है?”

गुंजन कहती है – “ईमानदारी”.
फिर वो उसे कहते हैं – “तो अगर तुम अपने काम में ईमानदार हो, तो देश के संग गद्दारी कर ही नहीं सकती। तुम्हें क्या लगता है एयरफोर्स को ‘भारत माता की जय चिल्लाने वाले चाहिए ? उन्हें बेटा वैसे कैडेट्स चाहिए, जिनका कोई लक्ष्य हो, जोश हो, जो मेहनत और ईमानदारी से अपनी ट्रेनिंग पूरी करें, क्योंकि वही कैडेट्स आगे चलकर बेहतर ऑफिसर बनते हैं और देश को अपना बेस्ट देते हैं। तुम सिनसिएरिटी से, हार्ड वर्क से, ईमानदारी से एक बेहतर पायलट बन जाओ, देश भक्ति अपने आप हो जाएगी...”

यह फिल्म केवल लड़कियों को ही नहीं बल्कि उनके भाइयों और माता-पिता को भी देखनी चाहिए। यह फिल्म घर के सभी सदस्य को एक संग बैठकर देखनी चाहिए। यह फिल्म आपको भीतर से बेहतर बनाएगी, निर्मल कर देगी। 

और चलते - चलते पंकज त्रिपाठी के लिए रामदरश मिश्र  जी की पंक्ति है -

पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।
ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे।

6 comments:

Khhaaksaar said...

बहुत खूब।

Vishnu said...

वाह जैसे कोई फिल्म ही चल रही हो पढ़कर फिल्म देखने की इच्छा भी जागृत हो गयी।पंकजजी तो वैसे ही इतने मझे हुए कलाकार है कि उनका किसी भी फिल्म में होना उस करैक्टर को पूर्णतयाः जीवंत कर देता है।

सुशील कुमार जोशी said...

बढिया

शिवम् said...

हर ब्लॉग में कुछ नया सीखता हूं।

ᴘʀɪʏᴀɴᴀᴛʜ ɢᴏsᴡᴀᴍɪ said...

Bhut khub sir

Rakesh Gupta said...

Bahut hi Sundar laga.. Thanks..

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