Wednesday, June 27, 2007

मृदुला ने उठाया बीड़ा


"हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले..."
लेकिन हर एक कि खवाहिश ऐसी नहीं होती है। बहुतों की ख्वाहिश दूसरों के लिए भी होती है। इसी कड़ी में एक ऐसी महिला का नाम है, जिसने महानगरों की हाई-प्रोफाइल जिंदगी को एक हीं झटके में छोड़कर बिहार के एक गांव की लड़कियों को बदलने का बीड़ा उठा लिया। मृदुला सिंहा नाम की यह महिला 1998 में बिहार के एक गांव में बसने का मन बनाया। पूर्णिया जिले एक गांव चम्पानगर में 1998 में इन्होंने नींव डाली एक संस्था की और नाम रखा "निखार"। तपती दुपहरी हो या फिर कपकपाती ठंड, हर पल यह 53 वर्षीय महिला गांव की लड़कियों को बदलने का काम करती रही। इस उपेक्षित गांव में लड़कियां पूरी तरह पिछड़ी हुई थी, लेकिन आज की तस्वीर साफ अलग है। यहां की लड़कियां जूट के कालिन बनाती है, ब्यूटीशियन का कोर्स करने के बाद अपने हम उम्रों को संवारती है, और अपनी तकदीर खुद लिख रही है।

मृदुला सिंहा बताती है ".शुरू में तो जैसे लग रहा था अब कुछ नहीं होने वाला, लड़कियां घर से नहीं निकलती थी, लेकिन मैंने धैर्य बनाए रखा और आज तो मेरा कारवां आसमां को छूने की ज़िद कर रहा है।" मृदुला जी अपनी पूरी जिंदगी हीं निखार को समर्पित कर चुकी है। सपनों को पूरा करने की एक मिशाल उन्होंने कायम की है। लड़कियों को सबल बनाने के बाद मृदुला जी लड़कों के लिए भी काम करेगी। दरअसल इस महिला के पास योजनाओं का पूरा भंडार है, यदि योजनाऐं यूं ही सफल होती जाती है तो यकीन मानिए समाज का आर्दश रूप चंपानगर में देखने को मिलेगा।
दिल्ली हाट, मुंबई और कोलकाता में इस संस्था द्वारा बनाए गए सामान धड़ल्ले से बिक रहे हैं। दरअसल यह कहानी आगे बढ़ाने के लिए है। आखिर किसी को तो बीड़ा उठाना हीं पड़ेगा। इसके लिए न तो संसद में बिल पास करने की आवश्यकता है और न हीं नेताओं के वादों की। उन लोगों के लिए तो मृदुला सिंहा एक प्रेरणा की मिशाल है, जो समाज को बदलने का ख्वाब रखते हैं। दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में रहने वालों की ख्वाहिशें अब उस जड़ की तरफ जानी चाहिए, जहां की ख्वाहिशें अभी तक सोई हुई है। आज "निखार" नामक यह संस्था गांव की आधी आबादी को जहां शिक्षा की राह दिखाई, वहीं रोजगार का भी बंदोबस्त कराया। एक महिला की चाहत ने अनेकों जिंदगी बदल डाली। खासकर महिलाओं को ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि आंकड़ों के जाल में भी समाज का यह तबका पिछड़ा हुआ है। विकास नहीं हुआ है का रोना रोने से भला है कि मृदुला जी की तरह खुद विकास का बीड़ा उठाया जाए। तो क्यों न निखार का यह रूप चमचमाते हुए और गांवों को एक नयी राह दिखाए..।
मृदुला जी अक्सर गुनगुनाती है-
"अपना गम ले के कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज को सजाया जाए....।"

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