Sunday, October 27, 2024

बिहार में भूमि सर्वे का 'कटु सत्य'

2013 में जब मेरे जैसे बहुतेरे लोग बिहार लौटे थे, उस वक्त यह सूबा बदलाव की नई-नई आवाजें सुना रहा था. सूबे के मुख्यमंत्री अपनी साइकिल योजना को लेकर मीडिया में लोकप्रिय हो रहे थे. फिर कुछ एक साल बाद मुख्यमंत्री मानव शृंखला नामक एक अनोखे इवेंट के चक्कर में बिहार के लोगों को सड़क पर खड़ा करवाने लगे.
मुझे याद है शराबबंदी को लेकर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मानव शृंखला बनवाने लगे थे. जिस एजेन्सी को शुरुआत में इस इवेंट का वीडियो तैयार करने के लिए ठेका मिला था, उसने मेरे गांव चनका में भी एक डेमो किया था. इसके बाद शराबबंदी की कहानी ने किस मोड़ पर बिहार को पहुंचा दिया है, किसी से छुपा नहीं है. एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार को जमीन झगड़े से मुक्ति दिलाने के लिए बड़ा इवेंट पूरा करने का ठान चुके हैं, जिसका नाम है - भूमि सर्वे! शराबबंदी की तरह ही यह 'क्रांतिकारी' कदम है!

बिहार का भूमि सर्वे अभियान 

नीतीश कुमार की पहल पर बिहार में भूमि सर्वे अभियान चल रहा है. पिछला सर्वे शायद 1920 में हुआ था. आजादी के बाद भूमि सर्वे करने के कई बार प्रयास हुए पर वे सफल नहीं हो सके. अब यह बीड़ा नीतीश कुमार ने उठाया है. निस्संदेह यह एक सराहनीय पहल है. इससे भूमि विवादों का निपटारा हो जाएगा लेकिन रिजल्ट क्या निकलेगा इस पर संदेह है, शायद शराबबंदी की ही तरह! या फिर सकारात्मक भी! यदि आप बिहार के नहीं हैं लेकिन आपके आसपास कोई बिहारी है तो उससे एक बार जमीन सर्वे की बात पूछ कर देखिये, आपको बिहार का दर्द समझ में आ जायेगा. दरअसल पूरा बिहार अभी भूमि सर्वे के चक्कर में उलझ गया है. नौकरी से छुट्टी लेकर लोग बिहार लौटे हैं, जमीन के कागजात दुरुस्त करने वास्ते. इस सर्वे के नाम पर घर-घर की कहानियों में बदलाव हुए हैं. उधर, बिहार सरकार के विभिन्न मंत्रियों के अलग-अलग राग अलापने के कारण नीतीश जी का महत्वाकांक्षी इवेंट दिन-प्रतिदिन और उलझता जा रहा है. आगे क्या होगा यह किसी को पता नहीं है. लेकिन इतना तो सामने आ गया है कि जमीन को लेकर द्वेष बढ़ चुका है.


मुख्यमंत्री मौन, सर्वे के नाम पर लूट

मुख्यमंत्री इस पर पूरी तरह मौन हैं. उधर इस सर्वे में अपनी जमीन बचाने के लिए परेशान लोगों को एक छुपा रुस्तम तबका लूट भी रहा है. यह जमीन मेरी है, इस दावे को सिद्ध करने के चक्कर में गांव घर में मार-काट भी मची हुई है. बता दें कि सर्वे कराने की जिम्मेवारी भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग की है. विभाग इसको लेकर कितना गंभीर है, इस पर आप खुलेआम सवाल उठा सकते हैं. विभाग के मंत्री डॉक्टर दिलीप कुमार जायसवाल इसको लेकर जो बयान दे रहे हैं, उससे भ्रम की स्थिति पैदा हो चुकी है. अधिकारी से लेकर रैयत तक सब असमंजस में हैं. बिहार में सर्वे को लेकर आप किसी से पूछ लीजिए, वह अपने तरीके से भूमि सर्वे पर ज्ञान दे देगा. इस सर्वे इवेंट की सच्चाई को समझने के लिए आपको बिहार के भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के टॉल फ्री नंबर 18003456215 पर फोन करना होगा. दरअसल 24 सितंबर को इस विभाग के मंत्री ने सर्वे में आ रही दिक्कतों को दूर करने तथा सुझाव और शिकायत दर्ज कराने के लिए एक टॉल फ्री नंबर जारी किया. नंबर है-18003456215. मजेदार बात यह है कि यह नंबर हमेशा व्यस्त मिलता है. चाहें तो आप भी कोशिश कर सकते हैं.

किसानों की अंतहीन समस्या

यह सब एक किसान और जमीन मालिक के तौर हुए अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ. सर्वे की अंतिम तिथि के बारे में भी फिल्मी सस्पेंस बना हुआ है. ऐसा लगता है कि सरकार के जिम्मेवार लोग ही भ्रम फैला रहे हैं. आरम्भ में ग्राम सभाओं में अंतिम तिथि 24 सितंबर बताई गई थी. फिर 7 सितंबर को विभागीय मंत्री डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल का बयान आता है कि कोई अंतिम तिथि नहीं है. 15 सितंबर को उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी दोहराया कि जब तक सभी लोग संतुष्ट नहीं हो जाते, सर्वे का काम जारी रहेगा. अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में या ब्लॉग लिखते हुए भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि सर्वे को लेकर कागजात जमा करने की प्रक्रिया का असल रूप क्या है. वैसे भी जमीन और जमीन के कागजात को लेकर भला कौन संतुष्ट हुआ है और हो भी कौन सकता है! मीडिया में आई खबरों के आधार पर यह कह सकता हूं कि कागजात खोजने के लिए जमीन मालिकों को 3 महीने का समय दिया गया है. कई लोग इसका यह भी अर्थ निकालते हैं कि सर्वे तीन माह के लिए स्थगित हो गया है. 

सर्वे के नाम पर जेब भरो अभियान

वहीं पिछले महीने टॉल फ्री नंबर जारी करते हुए विभागीय मंत्री ने कहा था कि सर्वे से संबंधित स्वघोषणा देने की तिथि 30 नवंबर तक बढ़ा दी गई है. अब इसमें से किस बयान को सही माना जाए, यह सवाल उठ खड़ा हुआ है. सूबे के मुख्यमंत्री पूरे प्रकरण पर चुप हैं. उनकी लंबी चुप्पी के आसपास बिहार के लोग अपने अपने तरीके से जमीन का ज्ञान बांच रहे हैं. यदि आप बिहार के ग्रामीण इलाके का दौरा करेंगे तो जमीनी सच्चाई से रूबरू हो पाएंगे. ग्राउंड पर जमीन मालिक परेशान हैं. उनसे छोटे मोटे काम के भी मोटी रकम वसूली जा रही है. सर्वे के नाम पर पंचायतों में सरकार के समानांतर एक सिस्टम बन चुका है. सर्वे अभियान के साथ साथ जेब भरो अभियान भी चल रहा है. ऐसे में इसकी सफलता संदिग्ध है.

डिजिटाइज करने के नाम पर खेला

जमीन के आंकड़ों को डिजिटल करने के चक्कर में लोग पैसा फूंक रहे हैं. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बिहार का खेतिहर समाज इस सर्वे को लेकर दो फांक में बंट चुका है. दरअसल बिहार में जमीन के डिजिटल रिकॉर्ड की क्वालिटी की जांच होनी चाहिए. एक बड़ा घोटाला इस रिकार्ड के नाम पर किसी सरकारी फाइल में दबा हुआ है, यह एक ऐसा जिन्न साबित होगा, जिससे आगे चलकर बिहार में भारी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है. कई दल के लोग इस ओर इशारा कर रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि बिना जांच के ही प्राइवेट कंपनी को जमीन के डिजिटाइजेशन का काम दे दिया गया था. इससे किसानों को जमीन के कागजात ऑनलाइन नहीं मिल पा रहे हैं. इस बीच यह भी ख़बर सामने आई है कि विभाग के सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे खुद जांच करके दस्तावेजों को पोर्टल पर अपलोड करें.

होना यह चाहिए कि सभी अंचल और जिला अभिलेखागारों में रखे जमीन और राजस्व से जुड़े कागजातों को स्कैन और डिजिटाइज हो. यह एक बड़ा काम है लेकिन इस काम में भी शुरुआत में ही गोरखधंधा हो चुका है, शायद 2018 में ही या उससे पहले लेकिन यह सच है कि यह सब नीतीश के कार्यकाल में ही हुआ है. 

गांव घर में कहावत है कि भूमि और भाग्य का एक ही स्वभाव है. आप जैसा बोयेंगे, वैसा ही काटेंगे. अब देखना है कि बिहार के भाग्य में नीतीश कुमार ने क्या बोया है.

( यह ब्लॉग ABP News के लिए लिखा गया है)

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