लेकिन इन सबके बीच नई पीढ़ी को यह भी बताने की जरूरत है कि अपना पूर्णिया कभी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हुआ करता था।
यहां एक राजकुमार हुए, राजकुमार श्यामानंद सिंह। उन्हें ' संगीत भास्कर ' की उपाधि प्राप्त थी। उन्हें बंदिशों से प्रेम था। वे इस बात की बहुत ख्याल रखते थे कि सुर ठीक से लगे। उन्होंने संगीत की शिक्षा कलकत्ता के उस्ताद भीष्मदेव चट्टोपाध्याय से प्राप्त की।
कुमार साहेब संगीत के बाज़ारीकरण के खिलाफ थे। इसलिए अपने जीवन काल में कभी भी किसी म्यूज़िक कंपनी को रिकॉर्डिंग का अवसर नहीं दिया। जहां तक उनके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी है, उसके अनुसार कुमार साहेब और सचिन देव बर्मन गुरुभाई थे।
पूर्णिया का निवासी होने के नाते यह सोचकर आज भी हम रोमांचित हो जाते हैं कि उस समय के सभी बड़े शास्त्रीय गायकों की आवाजाही कुमार श्यामानंद सिंह के घर पर लगी रहती थी।
उस्ताद फ़ैयाज़ खान साहिब (आफताब ए मौसिक़ी),उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खान साहिब,उस्ताद मुबारक़ अली खान,उस्ताद निसार हुसैन खान, पंडित डी वी पलुष्कर, सुरश्री केसरबाई केरकर, सवाई गंधर्व, उस्ताद विलायत हुसैन खान साहिब,उस्ताद हाफ़िज़ अली खान साहिब,उस्ताद अल्ताफ हुसैन खान साहिब खुर्जा वाले, पंडित जसराज, दिलीप चंद बेदी, उस्ताद मुश्ताक़ हुसैन खान साहिब,पंडित नारायणराव व्यास, पंडित बासवराज राजगुरु, उस्ताद सलामत अली खान और उस्ताद नज़ाक़त अली खान, सरोदवादक बाबा अलाउद्दीन खान, पंडित चिन्मय लाहिड़ी, पंडित रामचतुर मल्लिक, ये सब कुछ नाम हैं जो कुमार साहेब के घर पर संगीत की प्रस्तुति दिया करते थे!
कल साँझ कुमार साहेब की जयंती के अवसर आयोजित कार्यक्रम में जाना हुआ। संयोग से कार्यक्रम शास्त्रीय संगीत से जुड़ा था। छोटे शहर में शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं और छोटे बच्चों की दीवानगी मेरे प्रिय विषयों में एक है। ठीक वैसे ही जैसे अंचल और पलायन को मैं गंभीरता से देखता हूं।
ख़्याल गायिकी में प्रमुख राजकुमार श्यामानंद सिंह की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम में कलकत्ता से कलाकार आए थे।
वैसे तो राग-धुनों का व्याकरण मुझे आता नहीं है लेकिन शास्त्रीय संगीत खींचता आया है। इसे में योग की तरह स्वीकार करता हूं।
पूर्णिया जैसे शहर में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में सौ लोगों का जमा होना मुझे रास आता है , एक उम्मीद जगती है कि शास्त्रीय संगीत के प्रति नई पीढ़ी की रूचि बढ़ रही है।
यहाँ पूर्णियाँ में मुझे कई शिक्षक मिलते हैं जो शुद्ध रूप से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं। कुछ तो शहर पर बंगाल का प्रभाव है तो कुछ यहाँ की माटी का।
खैर, पूर्णिया को इस बात का मलाल होना चाहिए कि एक दौर में जिस शख्सियत ने इलाके को देश में पहचान दी, उसे पूर्णिया ने कुछ भी नहीं दिया और लगभग भूला दिया!
1 comment:
Very realistic full of facts n authentic article on one of the born prince and an unsung hero Sangeet Bhashkar Rajkumar Shyamanand Singh.No one wrote a single line on this programme on classical music in Purnia,Purnia which once upon a time used to be fort of classical music,art and culture.Atleast someone dared to write few lines on this.Çongrats n bless the blogger.
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