बिहार को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ने वाली एक सड़क है, जो पूर्णिया- किशनगंज होते गुवाहाटी से आगे निकल जाती है। इन इलाकों में आप मक्का - धान से आगे चाय, सुपारी तक की खेती देख सकते हैं।
इतिहास के पन्नों को खुद में समेट लेने का साहस रखने वाला यह इलाका कोसी से लेकर महानंदा - ब्रह्मपुत्र नदी के स्वभाव से वाक़िफ़ है। इसी क्षेत्र में एक गाँव है ' बड़ीजान', जो बिहार के किशनगंज जिला में आता है, जो पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार है।
धर्म- जाति की राजनीति में उलझे रहने वाले हम सब इतिहास के इस महत्वपूर्ण इलाके को रद्दी कागज की तरह छोड़ चुके हैं मानो यह घर का कबाड़ खाना हो !
यह कहानी किशनगंज जिला के कोचाधामन प्रखंड के बड़ीजान गांव की है। यह गांव अपने अंदर हजारों साल के पुराने दास्तां को समेटे हुए है। लेकिन न तो सरकार और न ही पुरातत्व विभाग इस ओर अपनी रूचि दिखा रहा है। यहां आज भी पाल वंश युगीन सूर्य देव के काले पत्थर वाली मूर्ति अपनी दास्तां खुद सुना रही है।
बड़ीजान गाँव लोनसबरी नामक एक बरसाती नदी के निकट बसा हुआ है। जो प्राचीन छाड़ नदी का किनारा है। लोनसबरी नदी कनकई नदी में मिलकर महानंदा नदी में समा जाती है। लिंग पुराण के अध्याय 51 के श्लोक 27-30 में कनकंदा नदी का उल्लेख है।
इसी नदी के दक्षिणी पूर्वी कोण में जंगली जानवर और विविध पक्षियों से व्याप्त एक घना जंगल हुआ करता था। जिसमें सदा शिव निवास करते थे। इस घने जंगल में साम्ब सदा शिव की प्रतिमा अपने गुणों के साथ पूजित थी। इस घने जंगल की पहचान बड़ीजान क्षेत्र से की जा सकती है।
आज के दौर में जब जमीन मतलब खरीदने और बेचने की चीज बन गई है, जिसे सरकारी भाषा में राजस्व कहा जाने लगा है, तब इस क्षेत्र को बड़ीजान दुर्गापुर कहा गया है। अंग्रेज सर्वे अधिकारी बुकानन के अनुसार राजा वेण के वंशज ने बड़ीजान में एक किला बनवाया था। जिसमें करीब 28 तालाब थे। जो एक ही रात में खोदे गए थे। वर्तमान में उक्त जगह पर मात्र चार तालाब हैं। बुकानन ने इस बड़ीजान गांव के बारे में अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है।
निरंतर कृषि कार्य होने के कारण इन टीलों की ऊंचाई अब समाप्त हो गई है। जिसके नीचे प्राचीन भगवान सूर्य का मंदिर और आवासीय क्षेत्र दबे हुए है। बड़ीजान हाट में पिपल वृक्ष के नीचे भगवान सूर्य की विशाल प्रतिमा रखी हुई है, जो दो टुकड़ों में खंडित है।
भगवान सूर्य की प्रतिमा की ऊँचाई पांच फीट छह इंच तथा चौड़ाई दो फीट 11 इंच है। बड़ीजान गांव के सीमावर्ती क्षेत्रों मे प्रस्तर से निर्मित मंदिर मे प्रवेश द्वार पर लगाया गया एक विशाल लिंटेल मंदिर भी भव्यता को दर्शाता है। लिंटेल मंदिर बेसालू पत्थर से निर्मित है इसकी माप 12 फीट दो इंच है।
बड़ीजान अब पंचायत है, यहाँ के वार्ड संख्या आठ में मंदिर का अवशेष बिखरा पड़ा है लेकिन सरकार से लेकर विभाग तक जबरदस्त चुप्पी साधे हुए है!
1 comment:
अनुभव वो ब्लॉग है जिसने पहली बार मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया था. 2006 में पहली बार इसे पढ़ना शुरू किया था और उस वक्त नई सड़क (रवीश) के बाद ये ब्लॉग था जिसके पोस्ट इंटरनेट मिलने पर कॉपी करके रखता और पढता था. आज बहुत दिनों बाद यहाँ आना हुआ है.
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