Wednesday, October 11, 2023

किसानी

आज फेसबुक मेमोरी में अपना ही स्टेटस मोहक लग रहा है ! आज के ही दिन फेसबुक को अपना परिचय दिया था - 'खेती - बाड़ी, कलम स्याही'! 
किसानी करते हुए आठ साल गुजर गए। इन आठ वर्षों में जीवन इंद्रधनुष की माफिक हो गया। कितना कुछ बदल गया। एक से बढ़कर एक लोग मिलते रहे, कारवां बनता जा रहा है। 

गुजरे आठ साल में बहुत कुछ खोया भी, बहुत कुछ पाया भी। आप जब अपने काम-धाम का लेखा-जोखा करने बैठते हैं तो आपका मन शिक्षक की भूमिका में सामने खड़ा हो जाता है। वही बताता है कि आपने क्या खोया, क्या पाया! 

गाम -घर और खेती-बाड़ी, जीवन का हर रंग दिखाने में कामयाब रहा और यह चेतावनी भी देता रहा कि अभी बहुत कुछ करना बांकी है, पड़ाव आते रहेंगे, लेकिन वह हमारी मंजिल नहीं होगी।

इन आठ वर्षों में धान, मक्का, गाछ-वृक्ष, जल-जंगल-जमीन, सबकुछ किताब के पन्नों की तरह जीवन में समा चुका है। किसान की आवाज़ अंदर-भीतर रियाज़ करता रहता है। 'एक ऋतु आये एक ऋतु जाए' की सीख इसी पेशे में मिली।

धान के मौसम में किसानी करते हुए इन गुजरे आठ साल का हिसाब करने बैठा हूँ तो धान की हरियाली और भी मोहक लगने लगी है। खेत को देखता हूँ लगता है कि कबीर लाठी लिए सामने खड़े हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि मन के भीतर कितना मैल बैठ गया है, पहले उसे तो साफ करो! तभी सूरदास की यह पाती याद आ जाती है- 

"मो सम कौन कुटिल खल कामी।
पापी कौन बड़ो है मोसे, 
सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, 
सुनिए श्रीपति स्वामी॥"

दरअसल खेती - बाड़ी, कलम स्याही करते हुए हर दिन कई लोगों से मुलाकात होती है, हर कोई कुछ न कुछ न सीख देकर ही जाते हैं। किसानी के पेशे में आने के बाद इस बात को लेकर मन और मजबूत हुआ कि वक्त सबसे बड़ा शिक्षक है, वही सम्पादक है, वही साथी है, वह सबकुछ सीखा देता है। 

इन गुजरे आठ साल में बाबूजी की छाया भीतर पानी की तरह समाने लगी है, वे हर दिन कुछ नया दे जाते हैं ताकि संघर्ष जारी रहे। एक बार उन्होंने पूछा था - "झिंगुर की 'झीं-झीं' और गिरगिट की 'ठीक-ठीक' आवाज़ को पहचान सकते हो?" उस वक्त उनके सवाल को समझ न सका था, वे भीतर की शांति को समझने की सलाह दे रहे थे। दरअसल भीतर की शांति मन को धो देती है। 

खेती बाड़ी करते हुए लोगबाग से करीबी बढ़ती जा रही है, खेत की माया गाछ-वृक्ष की छाया में समाते जा रही है, नाटक की तरह। 

गुजरे वर्षों में गाँव भी बदला है, बहुत कुछ बदला। लेकिन किसानी के पेशे में आने के बाद जिस चीज ने मुझे मजबूत बनाया है वह संघर्ष ही है, रेणु की बोली में- 'तेरे लिए मैंने लाखों के बोल सहे...'

अभी बहुत कुछ करना बांकी है, यात्रा जारी है, हम सब यात्री बने रहें...

#ChankaResidency
#kisaan

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