लगभग दो साल पहले, ठंड के मौसम में पश्चिम बंगाल के किसी चाय बगान में पंकज त्रिपाठी भैया से मुलाकात हुई थी। जाते वक्त उन्होंने उज्जैन के महाकाल मंदिर की अगबत्ती हाथ में थमा दी और कहा, “इसकी खुश्बू कमाल है, जीवन में सुगंध बनी रहनी चाहिए।”
आज इस अगरबत्ती की बात इसलिए कर रहा हूँ कि क्योंकि इसका जुड़ाव उनकी फिल्म 'ओएमजी 2' से है।
फिल्म ‘ओएमजी 2’ के जरिये पंकज त्रिपाठी ने अपनी अभिनय यात्रा का एक पड़ाव पूरा किया है। हर बार जब भी उन्हें पर्दे पर देखता हूँ तो लगता है कि अपने अंचल का कोई 'संवदिया' है।
फणीश्वर नाथ रेणु अपनी कहानी 'संवदिया' में लिखते हैं - "संवाद पहुंचाने का काम सभी नहीं कर सकते. आदमी भगवान के घर से ही संवदिया बनकर आता है. संवाद के प्रत्येक शब्द को याद रखना, जिस सुर और स्वर में संवाद सुनाया गया है, ठीक उसी ढंग से जाकर सुनाना, सहज काम नहीं... "
'ओएमजी 2' में पंकज त्रिपाठी हमें संवदिया के रंग में दिखते हैं। उन्होंने मालवा की बोली को आत्मसात करते हुए फिल्म को धार दी है।
वहीं इस फिल्म के निर्देशक अमित राय को ' ओएमजी 2' लिए आने वाले समय में ट्रेंड सेटर फिल्मकार के रूप में याद किया जाएगा।
#OMG2
No comments:
Post a Comment