Wednesday, August 30, 2023

ओल की सब्जी का स्वाद!

'कबकब' समझते हैं? मुझे तो 'कबकब' एक स्वाद का नाम लगता है। तो पूछिये कि यह स्वाद मिलेगा कहाँ? तो जवाब है कि यह स्वाद देसी ओल अपने पास रखता है। हाइब्रिड ओल को इस स्वाद से वंचित रहना पड़ता है। 

ओल का चौखा और सब्जी बनाना हँसी-ठट्ठा का काम नहीं है। जतन से बने तो इसके आगे सारी सब्जियां पानी भरती नजर आती हैं। नहीं तो मुंह मे लेते ही 'कबकब' !

और यदि 'कबकब' स्वाद को और भी स्वादिष्ट बनाना है तो ओल की सब्जी में जम्बीरी नींबू डाल दीजिए! इससे ओल का सन्ना(चोखा) और ओल का रसदार दोनों बन जायेगा मजेदार। 

हमारे तरफ़ ओल को पूस-माघ में रोपा जाता है और भादो और आसिन तक यह फसल तैयार। मैथिली में हमारे यहां एक पुरानी कहावत है-
कियो-कियो खाइये भादवक ओल....की खाय राजा, की खाय चोर!

[अर्थ: भादो का ओल किसी-किसी को नसीब है, या तो राजा को या चोर को!]

तो बात 'कबकब' से शुरू हुई थी तो अब जब बात खत्म करने की वेला आई तो मैथिली के बड़े साहित्यकार और हास्य सम्राट हरिमोहन झा की याद आ गई है। उन्होंने ओल के 'कबकब' स्वाद का अपनी एक कविता में जिक्र किया है, हरिमोहन बाबू  लिखते हैं -

'टन-टन-टन-टन बाजथि कनियां सेदल ढोल जकां, 
'बोली हुनकर लागि रहल अछि कब-कब ओल जकां'

[अर्थ: नई नबेली-बहू गरम ढोल से निकली आवाज की तरह टन-टन बोल रही है और लोगों को उसकी बोली 'कबकब' ओल की तरह लग रही है! ]

1 comment:

Anonymous said...

बिल्कुल तीसरी कसम के डायलॉग की तरह "मन समझती है आप ,की तर्ज पर कब कब समझते हैं? 🤣🤣