बारिश से भींगी माटी को देखने के लिए इस बार हम सब तरस गए हैं। खेत की आँखें लगभग सूख गई है, उस माँ की तरह, जिसने जीवन में बस दुख भोगा हो। धनरोपनी तो जैसे तैसे लोगों ने करवा ली है लेकिन आगे का एक एक दिन अब पहाड़ लगता है।
खेतिहर की दुनिया अजीब होती है, हमारे लिए बारिश सुख भी है और दुख भी! हम बारिश को समझ ही न सके। कहीं बारिश से लोग तबाह हो रहे हैं तो कहीं हम जैसे लोग आसमां के सामने याचक बने खड़े हैं। मौसम विज्ञान जो कहे लेकिन किसान का मन अब कहने लगा है कि आगे विपत्ति है।
हमारे इधर धान की खेती वैसे भी अब अल्पसंख्यक का दर्जा पा चुकी है। लोगबाग अन्य नकदी फसलों पर निगाहें टिकाए रखते हैं। लेकिन इस मौसम में खेत को देखकर लगता है और कितने दिन बिन पानी के.... खेत में रेखाएँ इस कदर दिख रही है मानो हथेली की रेखाएँ फट गई है! सचमुच रेखाओं का खेल है मुकद्दर!
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