इन दिनों हर कोई महामारी के संक्रमण से बचने के लिए अपने घर में बंद है। हम सभी मोबाइल और अन्य डिजिटल माध्यमों से दुनिया जहान की बात करते हैं, दुनिया को देखते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं। इस कठिन समय में मीडिया से जुड़े कुछ लोग स्टूडियो और ऑफिस से कोसों दूर ग्राउंड से रिपोर्टिंग कर रहे हैं, ऐसे लोग दरअसल हमारी पीड़ा को आवाज देने का काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक रिपोर्टर है अपनी ज्योति यादव, जो घूम घूम कर सच लिख रही हैं, जो इस दौर में सहज नहीं है, इसके लिए साहस चाहिए, जो अब बहुत कम के पास है।
ज्योति पिछले साल भी दिल्ली, यूपी होते हुए बिहार आई थीं, जब लाखों प्रवासी श्रमिक पैदल ही दिल्ली पंजाब आदि से घर लौट रहे थे। ज्योति उस कठिन समय में भी कोरोना संक्रमण और ग्राउंड की सच्चाई से हम सब को द प्रिंट के प्लेटफार्म के जरिए रूबरू करा रही थी। उस समय भी वह गाँव-गाँव घूम रही थीं, बिहार के कैंपों में जा रहीं थीं, जहाँ 14 दिनों तक बाहर से आए लोगों को रखा जाता था। 2020में जब वह पूर्णिया पहुंची थी तो हमारी मुलाकात हुई थी।
इस बार जब कोरोना महामारी हर दिन तांडव मचा रहा है, हम सब हर रोज अपनों को खो रहे हैं, ऐसे क्रूर समय में रिपोर्टिंग के सिलसिले में ज्योति शहर और गाँव पहुँच रही हैं। दिल्ली – यूपी होते हुए वह एक दिन बिहार के अररिया जिला के रानीगंज पहुँच गईं, जहाँ कोविड की वजह से माँ और पिता दोनों की मौत हो जाती है।
ज्योति की रिपोर्ट जब आप पढ़ते हैं तो पता चलता है कि इन सुदूर इलाकों में संक्रमण ने कितने घरों को तहस नहस कर दिया है।
जब हमने ज्योति से पूछा कि आप रिपोर्टिंग के सिलसिले में घर से कब निकली तो उन्होंने कहा कि अब तो महीने से ऊपर हो चले हैं। वह दिल्ली से आठ अप्रैल को लखनऊ पहुंची और फिर 11 अप्रैल से उनकी यात्रा शुरू होती है। लखनऊ से बाराबंकी, सीतापुर, वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, मऊ, बक्सर,आरा, पटना, बेगूसराय, अररिया,मधेपुरा, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी और बिहार के कई और इलाके उनकी यात्रा के पड़ाव रहे हैं। शहर और ग्रामीण इलाकों तक वह पहुंचती हैं और लोगबाग से बात कर रिपोर्ट तैयार करती हैं।
लखनऊ में शमशान घाट की स्टोरी तैयार करते वक्त ज्योति बीमार पड़ जाती है। यात्रा के शुरुआत में ही संक्रमण की आशंका की वजह से उन्होंने खुद को तीन दिन के लिए आइसोलेट कर लिया और फिर निकल पड़ी यात्रा पर।
मधेपुरा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल हो या फिर दरभंगा का डीएमसीएच, ज्योति ने इन अस्पतालों की सच्चाई हम सब तक पहुंचाने का काम किया है। वह यूपी के पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाली आठ माह की गर्भवती महिला की कहानी सबके सामने लाती हैं, जिसे जबरन काम पर तैनात किया गया था।
ज्योति कहती हैं कि यह इमोशनल एसाइनमेंट है। उन्होंने बताया कि कई जगह संक्रमित लोगों के परिजन हाथ पकड़ कर कोविड वार्ड ले जाते हैं और दिखाते हैं असलियत...। वह कहतीं हैं, “फोन सिर्फ शमशान घाट , कोविड वार्ड और मरे हुए लोगों की तस्वीरों से भरी पड़ी है....।”
ज्योति यादव के रिपोर्टों से गुजरते हुए कई बार लगता है कि देखकर लिखना कितना दुखदायी है, दुख, जिसका आपके पास कोई इलाज नहीं लेकिन जब आप अस्पतालों में मरीजों के परिजनों से मिलते हैं तो वह बस आपको आशा भरी निगाहों से देखते रह जाते हैं....आप उनसे बात करते हैं...उनके दुख को महसूस करते हैं...
Gaon ki prakruti achi lag rahi hai.
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