Thursday, July 23, 2020

नीतीश जी के नाम

नीतीश जी
नमस्ते।

इन दिनों बिहार जूझ रहा है, एक तरफ महामारी  से तो दूसरी ओर बाढ़ से। राज्य का हर जिला संक्रमण के फेर में है।

' लोग मर रहे हैं '। नीतीश जी यह  वाक्य लिखते हुए लगा कि काश यह वाक्य जुमला होता ! लेकिन यही सच है।

आपसे हमेशा उम्मीद रही है। पार्टी के गुणा - गणित से इतर मैं आपको देखता रहा हूं, एक प्रशासक के तौर पर, एक अभिभावक के तौर पर। 

2015 से आपको देख रहा हूं। कोई कुछ कहे लेकिन यह सच है कि आपने बिहार में बदलाव की हवा चलाई, आपकी वजह से लोग लौटे हैं, अापकी वजह से सड़क बिजली, शहर गाम सब बदला है।

लेकिन आज, यह पाती इसलिए लिख रहा हूं कि आप एक बड़ा फैसला लें और चुनाव को टाल दें। बिहार ने मुल्क को बहुत कुछ दिया है, आप की राजनीति की पाठशाला के नायक जेपी रहे हैं, आप चाहेंगे तो एक बार फिर बिहार मुल्क ही नहीं बल्कि दुनिया के सामने एक छाप छोड़ जाएगा। 

आप ही सोचिए, जब मौत हो रही हो तब चुनाव की बात करना पाप ही लगता है, एक गंध लगती है, जलने की। जानता हूं राजनीति में सब कुछ चलता है लेकिन नीतीश जी, आपसे उम्मीद तो हम कर ही सकते हैं।

इन दिनों आपको जब भी देखता हूं तो जो छवि आंख में बनती है वह एक संयुक्त परिवार के मुखिया की होती है। परिवार का वह आधार स्तम्भ जो विकट से विकट परिस्थिति में किसी परिवार के किसी एक सदस्य को खुश करने के लिए नहीं बल्कि, सबके कल्याण के लिए फैसला लेता है। 

हमें अपने राज्य के मुखिया से यही उम्मीद है नीतीश जी। हर एक बिहारी के पास इस दौर में आपके लिए सवाल है। सवाल पूछने का हक हर किसी को है।

यह सच है कि इस दौर में  बिहार के  महासमर में चुनावी शतरंज खेलने के लिए हर कोई तैयार है, जो आपकी आलोचना कर रहा है वह भी और जो आपकी जय जय कर रहा है वो भी। 

लेकिन बिहार के गाम का खेतिहर, शहर के किसी मोहल्ले का युवा, इस वक्त महामारी से बचना चाहता है नीतीश जी, वह चुनाव नहीं चाहता।

चुनाव की माया से दूर बिहार को इस वक़्त इलाज चाहिए, महामारी की जांच चाहिए,  हर व्यक्ति के भीतर बस गए भय को हरने की युक्ति चाहिए...

मुझे याद है लॉक डाउन के शुरुआत में जब लोग लौट कर आ रहे थे तो आपने कोरोनटाइन सेंटर में ठहरे लोगों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गुफ्तगू की थी, आपकी बातें याद है, सबका मन आपने जीत लिया था, एक अभिभावक की तरह।

एक बार फिर आपसे उम्मीद तो कर ही सकते हैं नीतीश जी, इस नाउम्मीदी के दौर में...

आपका
गिरीन्द्र नाथ झा

 

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