राजनीति में नीति की बात होती है, भले ही नीति से कुछ लेना - देना नहीं हो लेकिन बात उसी की होती है। बहुत लोग जीवन में अनुशासन का पालन करते हैं, विकट से विकट परिस्थिति में भी वे अपनी लकीर सीधी ही रखते हैं, और वहीं बहुत लोग बहती हवा की तरह होते हैं।
खैर, यह सब लिखने के पीछे जनता दल युनाइटेड के नेता डॉक्टर अजय आलोक हैं। वे पेशे से डॉक्टर हैं और बिहार के सत्तारूढ़ दल के संग भी जुड़े हैं।
उनका आज एक ट्वीट पढ़ा, जिसमें उन्होंने गीतकार राजशेखर भाई के लिए अशोभनीय शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे यहां दोहराना ठीक नहीं। उन्होंने जिस अंदाज में सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म पर अपनी जुबान खोली है, उससे उन सभी लोगों को आपत्ति होगी, जिनका जुड़ाव कंटेंट से है।
एक दल का नेता जब खुलेआम कहे -" बिहार में बहार हैं , नितेशे कुमार हैं , यही गाना बनाया था ना आपने ?? अब मैं तो डॉक्टर हूँ , '.***..' से संवेदना सीखने की ज़रूरत मुझे नहीं हैं , आजकल जिनके टुकड़ों पे पल रहे हैं उनको थोड़ा गाना वाना सिखाइए..."
जदयू नेता की जुबान से यह सब सुनकर लगा कि आखिर हम सब कहां जा रहे हैं। इस मुल्क ने नेहरू जी और अटल जी जैसे लोगों को देखा सुना है, जिनके पास शब्द की ताकत हुआ करती थी। एक से बढ़कर एक नेता हुए हैं, जो पढ़ते लिखते रहे। बिहार की तो पहचान पठन - पाठन से रही है।
आलोक जी, जिस दल की नुमइंदगी करते हैं , वहां भी पढ़ने लिखने वालों की कमी नहीं है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अच्छे पाठक हैं। और गीत लिखने की जो बात आलोक जी ने की है तो वे यह भी जानते होंगे कि बिना नारे और पॉपुलर मीडिया से चुनाव नामुमकिन है।
लिखने के लिए तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन यह वक़्त महामारी से लड़ने का है। ऐसे में आलोक जी ने गीतकार राजशेखर भाई के बारे में जो कुछ भी कहा है, उससे बिहार का ही नाम खराब हुआ है। आलोक जी, यह जान लें कि राजशेखर जैसे लोग बिहार की पहचान हैं।
आलोक जी ने राजशेखर भाई के लिए अशोभनीय शब्द का इस्तेमाल किया और शब्द का मज़ाक उड़ाते वक्त शायद वे अपने ही दल के हरिवंश जी को भूल गए। जदयू ने उन्हें उनके शब्द का ही सम्मान दिया, वे आज उच्च सदन राज्यसभा के उप सभापति हैं। डॉक्टर अजय आलोक जी ने जिस अशोभनीय शब्द का इस्तेमाल राजशेखर भाई के लिए किया है, उससे हरिवंश जी को भी चोट पहुंचेगी यदि उन तक बात जाएगी।
और हां, आलोक जी सत्ता से संयम भी सीखना चाहिए, आपके नेता नीतीश कुमार इसके उदाहरण हैं, वे ओपेन स्पेस पर जुबान से अपशब्द नहीं निकालते हैं, शायद यही वजह है कि वे सोशल नेटवर्क से दूर ही रहते हैं।
2 comments:
राजनीति की पाठशाला में उधार के शब्दों की भरमार रहती है इसलिए जो बोलता है उसमें उसके बोल कितने हैं कोई सही-सही आंकलन नहीं कर सकता !
Hi thanks for postinng this
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