मीनाक्षी की पेंटिंग |
‘कागज, पेंसिल और मन के संग जीवन की कथा कही जा सकती है’ यह बात हमने अपने जिले के एक कला स्कूल में सुनी थी। मिथिला पेंटिग की बारिकी सीखते हुए बहनों के साथ हमने भी इस कला में हाथ आजमाया लेकिन कमबख्त हाथ में वैसी स्थिरता ही नहीं नसीब हुई कि हम भी रेखाओं से अपनी बात रख सकें।
खैर, वक्त के साथ इस कला में जीवन के ढेर सारे बिंब देखने को मिले। हमने इसी कला से कथावस्तु के रूप में पौराणिक कहानियों को जाना। घर में जब बहनें हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरों और प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ मोर, मछलियां और चिड़ियों को बहुत ही सुंदर तरीके से सिल्क साड़ी और कागजों पर उकेरती थीं तो मन रोमांचित हो जाया करता था। दुर्गा, काली, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश कैनवास पर उतार जाते थे। हमें काली की तस्वीर सबसे अधिक खींचती थी, आजतक नहीं जान सका कि काली ही क्यों?
खैर, एक बार फिर हमारी नजर ऐसे ही कुछ पेंटिंग्स पर आकर रुकी है लेकिन इस बार कलाकार की कलाकारी में हमने जीवन के दर्शन को देखा है। मछली देखी है, जल देखा है और इन सबके संग जीवन को महसूस किया है। इस कला का जानकार नहीं होने के कारण इन पेंटिग्स में हमने गणित को नहीं बल्कि एक दर्शक के रुप में जीवन को देखा है। युवा कलाकार मीनाक्षी इन दिनों जीवन को माछ के रुप में कैनवास पर उतार रही हैं।
खैर, वक्त के साथ इस कला में जीवन के ढेर सारे बिंब देखने को मिले। हमने इसी कला से कथावस्तु के रूप में पौराणिक कहानियों को जाना। घर में जब बहनें हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरों और प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ मोर, मछलियां और चिड़ियों को बहुत ही सुंदर तरीके से सिल्क साड़ी और कागजों पर उकेरती थीं तो मन रोमांचित हो जाया करता था। दुर्गा, काली, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश कैनवास पर उतार जाते थे। हमें काली की तस्वीर सबसे अधिक खींचती थी, आजतक नहीं जान सका कि काली ही क्यों?
खैर, एक बार फिर हमारी नजर ऐसे ही कुछ पेंटिंग्स पर आकर रुकी है लेकिन इस बार कलाकार की कलाकारी में हमने जीवन के दर्शन को देखा है। मछली देखी है, जल देखा है और इन सबके संग जीवन को महसूस किया है। इस कला का जानकार नहीं होने के कारण इन पेंटिग्स में हमने गणित को नहीं बल्कि एक दर्शक के रुप में जीवन को देखा है। युवा कलाकार मीनाक्षी इन दिनों जीवन को माछ के रुप में कैनवास पर उतार रही हैं।
माछ के भीतर दुनिया |
दरअसल मीनाक्षी मिथिला पेंटिंग्स के साथ कई प्रयोग कर रही हैं। उनकी जिस पेटिंग पर हमारी नजर सबसे अधिक देर तक टिकी है वह है मछली के पेट में कछुआ और ग्लोब। दरअसल इस तरह की पेंटिंग को बनाना सोचने के स्तर को नई ऊंचाई देने की तरह है। मिथक के अनुसार कछुआ पर दुनिया है। लेकिन मीनाक्षी का मानना है कि सब कुछ दुनिया और कछुआ सब माछ के अंदर..। माछ सर्वशक्ति मान है। हमें कोसी के कच्छप सदृश्य परती भूमि का ख्याल आता है, जहां कछुओं को पूजा जाता है।
इस पेंटिंग में अजीब लगाव है। कला के जानकार इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं लेकिन पाठक-दर्शक के तौर हमें यह माछ में सिमटी दुनिया लगती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरी दुनिया माछ के गर्भ में है।
ऐसी ही एक पेंटिंग सतरंगी मछली की है। मिथिला का होने की वजह से माछ हमारे लिए चलते रहने का भी एक माध्यम है। मीनाक्षी ने अपनी पेंटिंग में माछ को सात रंगों में कैनवास पर उतारा है। इसे देखकर मन का टेप रिकार्डर बोलने लगता है- सतरंगी रे.. लेकिन जब अब थोड़ा थमकर इस पेंटिंग में डूबते हैं तो जल के भीतर संतरंगी मछली की कल्पना जीवित हो जाती है।
अब देखिए न हमें उस अमेरिकन रेहू की याद आ रही है जो हमारे पोखर में बरसात के मौसम में ऊपर उछल-कूद करने लगती है। उस माछ के ऊपरी हिस्से पर जब धूप की परछाई आती है तो वह चमक उठती है सात रंगों में। मीनाक्षी की यह पेंटिंग हमें अंचल लेकर चली जाती है। लेकिन पेंटिग के गर्भ में दुनिया में रंग का होना भी है शायद।
मीनाक्षी की एक पेंटिंग मत्स्यावतार है। हमने माछ के संग सांप का मेल पेंटिंग में पहली बार देखा। बारह माछ और उसके संग सांपों की माला, बीच में शंख, कमल चक्र.. हम मिथकों से जु़ड़ी दुनिया से जुड़ जाते हैं। मिथक जो हमारे भीतर वास करता है लेकिन एक कलाकार ही उसे बाहर दुनिया के सामने रख सकता है। हमें तो इस पेंटिंग को देखकर यही लगा।
मीनाक्षी की इन पेंटिंग्स में डूबते-उतरते हम जीवन में माछ को देखने लगते हैं। प्रतीत होता है कि माछ के जरिए हम कितनी बातें किन-किन अंदाजों में बयां कर सकते हैं। और जब मिथिला पेंटिंग की बात चलती है तो हम और भी आंचलिक हो जाते हैं, वैश्विक होने के लिए।
माछ और जीवन को लेकर यह स्कैच तैयार करते वक्त कबीर की यह वाणी भी याद आती है- “पानी बिच मीन प्यासी, मोहि सुन- सुन आवें हांसी। घर में वस्तु न नहीं आवत, वन- वन फिरत उदसी।“ (प्रत्येक मानव के भीतर ईश का वास है, जहाँ निरंतर आनंद- ही- आनंद है। इसी की खोज करना चाहिए। बाहर घूमने या परेशान होने की कतई जरुरत नहीं है।)
माछ और जीवन को लेकर यह स्कैच तैयार करते वक्त कबीर की यह वाणी भी याद आती है- “पानी बिच मीन प्यासी, मोहि सुन- सुन आवें हांसी। घर में वस्तु न नहीं आवत, वन- वन फिरत उदसी।“ (प्रत्येक मानव के भीतर ईश का वास है, जहाँ निरंतर आनंद- ही- आनंद है। इसी की खोज करना चाहिए। बाहर घूमने या परेशान होने की कतई जरुरत नहीं है।)
{यदि आप भी इन पेंटिंग्स को देखना और समझना चाहते हैं तो दिल्ली में 12 अप्रैल से 19 अप्रैल तक हौजखास विलेज स्थित मुल्कराज आनंद गैलेरी (Lokayata Mulk raj Anand Gallery) में मीनाक्षी की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगने जा रही है। Myths Reinterpreted नाम से।}
5 comments:
मिथिला की मधुबनी से घर सजाने की बहुत इच्छा है , अभी तक मन में ही रही , आज आपने उस दर्द को फिर उभार दिया !!
सुंदा चित्र.
पुराने दर्शन को नए आयाम । सुंदर।
hindi mein likh rahi hu aasha hai k ghalat jo keh gayi to nazar andaaz karoge :)....kaafi din k baad zindgi mein kuch ye padha jo laga k mere ya hum mein se kisi ki kahani kavita ya alfaaz hain...bahot khoob likha hai aur likhte rahiye god bless u :)
BEAUTIFUL POST WITH NICE PAINTINGS.
TO LEARN MORE.
Post a Comment