कोसी के पूर्णिया अंचल में एक इलाका है, श्रीनगर। श्रीनगर जो एक प्रखंड (ब्लॉक) है, वहां एक छोटा सा गांव है ओड़िया रहमतनगर। बेहद उपेक्षित। विकास अभी भी वहां के लिए एक सपना सा है, जिसे लोकसभा, विधानसभा से लेकर पंचायत चुनावों में प्रत्याशी दिखाते आए हैं। लेकिन इन सबके बावजूद यहां जो हो रहा है वह सरकारी मशीनरी को सबक सीखाने के लिए काफी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस गांव की आबादी लगभग दो हजार के आसपास होगी। सड़क विहीन यह गांव इन दिनों अपने बल पर सड़क तैयार कर रही है। गांव के ही एक ग्रामीण ने सड़क के लिए अपनी जमीन दी है और अब सभी मिलकर खुद अपेन हाथों से अपने लिए सड़क बना रहे हैं। कोई बजट नहीं, कोई निविदा पत्र (ठेका का खेल) नहीं, सब अपने बल पर सड़क बना रहे हैं। न बीडीओ (प्रखंड विकास पदाधिकारी) का दफ्तर और न मुखियाजी की जी-हुजूरी..यहां जो हो रहा है वह सामाजिक प्रयास का एक नमूना भर है। निजी सहभागिता का यह मॉडल यह बताता है कि यदि सोच लिया जाए तो हर कोई अपने स्तर से विकास का हिस्सा बन सकता है।
इस भागमभाग..रॉकेटनुमा, शतकनुमा ...कंपनीनुमा खबर उद्योग के लिए भले ही यह खबर नहीं हो लेकिन उस गांव के लिए तो यह प्रधानमंत्री बनने से भी बड़ी खबर है क्योंकि इस गांव में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसे स्वर्णिम सपने की अबतक बात भी नहीं हुई थी।
ऐसे में आपके कथावाचक के लिए यही आज की सबसे बड़ी खबर है। उसे कहीं पढ़ी यह पंक्ति याद आ रही है - "अपना गम लेकर कहीं और न जाया जाए, चलो घर की बिखरी चीजों को ही फिर सँवारा जाए.... "
गांव का नाम, ओड़िया रहमतनगर, रोचक. यह शब्द शायद (जसमा) ओड़न से बना है, जो मिट्टी के काम में, तालाब खोदने में बेहद कुशल ही नहीं विशेषज्ञ भी होते हैं.
ReplyDelete@Rahul Sing- जी, इस गांव में माटी के बरतन बनते थे पहले। हालांकि अब ऐसा नहीं रहा। काम-काज, रोजी-रोटी, नमक पानी पैसा के लिए लोगों का पलायन जारी है।
ReplyDeleteनया दौर फिल्म की याद आ गयी। उसमें भी इसी तरह पुल बनाने का काम होता है लेकिन उसमें अच्छी बात ये है कि मीडिया चलकर गांव तक आता है,ओड़िया रहमतनगर में नहीं।
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.