Wednesday, September 28, 2011

जिंदगी के 10 दिन ऊर्फ खुशी का बहीखाता


मौसम बदलते देर नहीं लगती है। सड़क पर धूल उड़े तो घबराइए नहीं, बारिश होगी तो धूलें भी बैठ जाएगी। लंबे अंतराल के बाद ब्लॉग के बहीखाते में जोड़-घटाव करने बैठा हूं तो सारी जमा-पूंजी खुशी में समाती जा रही है। मूलधन भी खुशी और ब्याज भी खुशी।

ये दस दिन मेरे जीवन के सबसे सुंदर रहे। ऐसे में जब कोई पूछता है कि कैसे हो
? तो आपका यह कथावाचक एक ही जवाब देता है- सुंदर हूं। 19 सितंबर, दिन सोमवार, सुबह होते ही पता नहीं क्यों कुछ किताबों में ज्यादा दिलचस्पी देने लगा, पता नहीं लेकिन दोपहर तक मानो एक खुली किताब मेरे घर आ गई, खुशी के आमुख पन्नों के साथ। मैं एक प्यारी सी बेटी का पिता बन गया। इस सुख का कोई बहीखाता नहीं होता है शायद।

19 सितंबर से 27 सितंबर तक अस्पताल-घर की भागम-भाग में भी स्नेह का आशीष मिलता रहा और मैं मन ही मन न जाने कितनी कविताएं-नज्में करने लगा। हर बार जब बिटिया का चेहरा दिखता मन ही मन न जाने कितने शब्द, कितने रंगों में रगों में दौड़ने लगते थे। (यह अहसास बदस्तूर जारी है)।

इस दौरान, जिसे सब आभासी दुनिया कहते हं, जी हां फेसबुक, ट्विटर ब्लॉग आदि, वहां विचरने वाले मेरे दोस्तों ने सैकड़ों की संख्या में बधाईयां दी, फोन पर हालचाल पूछा। ऐसे अवसरों पर मैं कुछ भावुक हो जाता हूं। बिटिया रानी के जन्म के पांच घंटे बाद मैंने खुद को और उस दिन को अपने लिए जीवन भर के लिए यादगार बनाने के लिए कुछ किताबें खरीदी। तीन किताबें, पहली परती परिकथा (रेणु), दूसरी जहं-जहं चरण पड़े गौतम के और तीसरी हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत कबीर। हालांकि परती परिकथा दो बार पढ़ चुका था लेकिन बिटिया के जन्म के बाद मैंने इसे एक बार फिर से पढ़ा।

दो दिनों में इस किताब के बहीखाते खत्म किए। इस बार का अहसास अलग रहा। मैं जितेंद्र नाथ (परती परिकथा का एक नायक) में ढेर सारी चीजें तलाश करने में जुट गया। (इस पर फिर कभी, क्योंकि अभी दो किताबें बांकी हैं।)

उधर, इन 10 दिनों में फेसबुक की तस्वीर भी बदल गई, गूगल में भी बदलाव आया। नए एप्लीकेशंस के साथ फेसबुक को निहारना भी खुशी  का अलग अहसास रहा। बारिश की बौछारें भी खुशी के साथ मेरी बॉलकनी से कमरे में पहुंचने लगी। फेसबुक पर प्रतिभा कटियार जी की टिप्पणी आई-

बूँद गिरी ओस की, बिटिया रानी गिरीन्द्र की...इसे देखते ही जाने को जी चाहता है...

तो उधर, वीनित भैया ने एक ऐसी कविता पोस्ट कर दी, कि मैं भावुक सा हो गया, आप भी पढिए-

"मेरी इन आंखों में तुम्हें प्यार दिखता है
,
मेरे गालों को बार-बार चूमने का मन करता है ,
मेरे ओंठ गुलाब की पंखुडियों से भी कोमल लगते होंगे शायद
कि तुम चूमने तक से डरते होंगे,
हाथ तुम्हें रुई की फहों की तरह लगते होंगे और
...
पैर जमीन को छूकर छिल न जाए,डरते होगे इससे,
मुझे किसी की नजर न लग जाए,
अभी दादी काला टीका लगा देगी
मेरी मां हड्डियों को मजबूत करने के लिए रोज मालिश करेगी
लेकिन जो मेरी इन आंखों में प्यार के बजाय
मर्दों के प्रति घृणा दिख जाए
मेरे गालों पर कमोल भावों के बजाय प्रतिरोध की रेखाएं उभर जाए,
मेरे ओंठ बचपन में मिले गुलाबीपन को बनाए रखने के लिए
लिपिस्टिक से रंगने के बजाय,
अस्वीकार के स्वर बुदबुदाने लग जाए,
हाथों में कलछी,बेलन की जगह माउस और कीबोर्ड थम जाए,
मेरे पैर उन बस्तियों में बार-बार जाने का मन करे,
जहां जाने से सभ्य समाज के बच्चे अक्सर गंदे हो जाते हैं,
दादी के काले टीके को बेखोफ होकर
गली,सड़कों पर घूम-घूमकर बेअसर करने लग जाउं,
मां की मजबूत की हुई हड्डियां किचन के बजाय
स्टडी टेबल पर टिक जाए तो
मेरी स्टडी टेबल के चारों तरफ मेडीकल,
इंजीनियरिंग,एमबीए के जाल तो नहीं
बुनने लगोगे पापा,
मैं जो सिमोन जैसी बनना चाहूं, ग्राम्शी जैसा सोचना चाहूं
तुम करियर का हवाला देकर ऐसा करने से रोकोगे तो नहीं नहीं न
पापा तुम तब भी मुझे उतना ही प्यार करोगे न,
बोलो न,उतना ही न,जितना कि आज
मेरी इस कोमल काया पर रीझ-रीझकर कर रहे हो?...
तुम्हारे भीतर का मर्द बाप तब नहीं दहाडेगा न
आपकी बेटी-गिरि प्रिया(जब तक आपलोग मेरा कोई नाम नहीं रखते)
..
गिरीन्द्र और प्रिया की प्यारी बेटी के लिए.."


ऐसे लम्हों में मुझे गुलजार याद आते हैं, रेणु की ताजमनी याद आती है..मतलब बस प्यार ही प्यार। आप सभी का धन्यवाद..आप सब मेरी खुशी के बहीखाते के हिस्सेदार हैं...। जाते-जाते गुलजार की बोस्की-

वक्त को आते न जाते न गुजरते देखा

न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है
शायद आया था वो ख्वाब से दबे पांव ही
और जब आया ख्यालो को एहसास न था
आँख का रंग तुलु होते हुए देखा जिस दिन
मैंने चूमा था मगर वक्त को पहचाना न था.....

5 comments:

shashwati said...

behad khoobsurat girindra! apni bhawnaowon ko isse aur behter tareeke se shayad nhi likha ja sakta hai. dher sari shubhkamnayen!

Rahul Singh said...

बधाई जी बधाई, पिछले वर्ष नवरात्रि आरंभ के यानि आज के ही दिन एक पोस्‍ट लगाया था- बिटिया.

Pratibha Katiyar said...

हमेशा ऐसे ही मुस्कुराते हुए दिन रहें...मन का मौसम खिला खिला सा रहे...यही दुआ है!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बिटिया के जन्म की बधाई :)

shikha varshney said...

बहुत बहुत बधाई.