Wednesday, February 16, 2011

मोहन राणा के बहाने सबद की यात्रा


ब्रिटेन के बाथ शहर मे रहने वाले मोहन राणा कवि हैं और एक अच्छे दोस्त भी। उनकी कविताओं में मुझे एक अलग ही अनुभूति मिलती है।  उनके यहां शब्द एक शक्ति की तरह है, जिसमें आप एक साथ कई चीजें खोज सकते हैं। मुझे वे अक्सर इन पंक्तियों के साथ याद आते हैं- एक बेहताशा हँसी कहीं रूकी पड़ी है भीतर / एकाएक फूट पड़ेगी अटकी हुई छींक की तरह..... अभी-अभी अनुराग के द्वार सबद पर उनको पढ़ा, जहां वे हमें कविता के विभिन्न रूपों से परिचित करा रहे हैं। मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि मोहन राणा अपनी कविताओं के जरिए जीवन के सूक्ष्म अनुभव बता रहे हैं। वे कहते हैं कि कविता हमें कुछ याद दिलाती है उस वर्तमान की जो घट चुका है वह अतीत जिसे अभी भविष्य बनना है पर हमें याद नहीं है।  उनका मानना है कि लेखक कविता और शब्द संरचना के बीच कार्बन पेपर की तरह है,जो हम छपा देखते-पढ़ते हैं वह दरअसल एक अनुभव का अनुवाद है जिसमें एक सच्चाई उकेरा गया है। सबद में उनकी चार कविताओँ को अनुराग ने शामिल किया है- पानी का रंग, अरे यह क्या है, एक पैबंद कहीं जोड़ना और लार्ड मैकाले का तंबू।  

पानी का रंग में राणा साब आत्मालाप करते नजर आते हैं। वे बताते हैं कि किस तरह हम अक्सर खुद से दूर निकल जाते हैं लेकिन एक वक्त ऐसा भी आता है, जब यह अहसास होता है कि हमें खुद से करीब होना चाहिए। वे हमें स्मृति की ओर मुड़ने का संकेत देते नजर आते हैं। इस कविता में वे एक जगह मन की बात कहते हैं-  शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में / इतनी बारिश के बाद यह कमीज़ तब पानी के रंग की होगी !


यदि आप चुप रहकर मन को सुनना चाहते हैं तो अरे यह क्या है पढिए। राणा साब यहां सामान के बहाने जीवन की सच्चाई बयां कर रहे हैं। वे कहते हैं कि  यह सामान कैसा, अब यह रास्ता नहीं। कविता के प्रवाह में यदि आप आगे बढेंगे तो मौन के सिवा आपके सामने कोई विकल्प नहीं बचेगा। मेरे हिसाब से एक कविता की सबसे बड़ी ताकत मौन ही होती है (कभी-कभी मौन से भी क्रांति की लौ उठती है)। यहां कवि कहता है- चोर समय चुरा रहा है अपने आपको ही,  पर विलाप कोई और करता ईश्वर के खो जाने का.

मोहन राणा प्रकृति के बहाने कविता की दुनिया रचते हैं। इसे उन्होंने एक पैबंद कहीं जोड़ना में एक बार फिर सिद्ध कर दिया है। कविता के शुरुआत में ही कवि की कसक सामने आ जाती है, वह कहता है - वो जंगल पहले सूखा मेरे भीतर। लेकिन मैं इस कविता को पढ़ते ही खुद को कविता के संग तालमेल करने का सुख अनुभव नहीं कर सका, मेरे लिहाज से यहां कवि जीवन दर्शन में कहीं उलझ सा गया है।

सबद में मोहन राणा की सबसे करीबी कविता मुझे लार्ड मैकाले का तंबू लगा। शब्दों की दुनिया की अहमियत दर्शाती यह कृति हमें यह अहसास दिलाती है कि दुनिया का हर कोना शब्दों से रौशन हो सकता है। यहां वे कबीर को उद्धृत करते हैं। वे कहते हैं - कबीर कह चुके असलियत माया महाठगनि हम जानी, और मैं केवल अपने आप से बात कर सकता हूँ, पहले खुद को अनुसना करता हूँ।

मोहन राणा की कविता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनकी कविताएं स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं।  दरअसल एक कवि के रूपर में वे पहले अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं, जिसके बाद होता है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे एक निरंतर यात्रा कर रहे हों, एक सजग यात्री की तरह।  

आप भी पढिए इन कविताओं को और कुछ ही पलों के लिए सही लेकिन शब्दों में जरूर डुबकी लगाइए।

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