Friday, February 20, 2009

प्यार –एक छाता



विपदाएं आते ही,
खुलकर तन जाता है
हटते ही
चुपचाप सिमट ढीला होता है,
वर्षा से बचकर
कोने में कहीं टिका दो
प्यार एक छाता है
आश्रय देता है, गीला होता है।


- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

7 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत खूबसूरत एहसास है

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह! गिरीन्द्र जी,बहुत बढिया लिखा है।अच्छा लगा।

खंभा said...

दोस्त तस्वीर थोड़ी बड़ी दिख रही है। इससे कविता की पंक्ति बिगड़ी मालूम पड़ रही है। बहरहाल, कविता ध्यान में लाने के वास्ते शुक्रिया।
ब्रजेश झा

Anonymous said...

bahut sundar

संदीप कुमार said...

प्यार सिपर्फ छाता नही है मेरे दोस्त
प्यार एक कविता है जिसे अकेले गुनगुना कर भी खुश हुआ जा सकता है
प्यार रसोई का धुंआ है जो रुलता तो है लेकिन जरूरी भी है
प्यार एक किताब है जिसपर जिंदगी के दस्तखत होते हैं
प्यार और क्या क्या तो है..............

संदीप कुमार said...
This comment has been removed by the author.
इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत ही प्यारी कविता है. सर्वेश्वर को याद करने के लिए धन्यवाद.