विपदाएं आते ही,
खुलकर तन जाता है
हटते ही
चुपचाप सिमट ढीला होता है,
वर्षा से बचकर
कोने में कहीं टिका दो
प्यार एक छाता है
आश्रय देता है, गीला होता है।
खुलकर तन जाता है
हटते ही
चुपचाप सिमट ढीला होता है,
वर्षा से बचकर
कोने में कहीं टिका दो
प्यार एक छाता है
आश्रय देता है, गीला होता है।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
बहुत खूबसूरत एहसास है
ReplyDeleteवाह! गिरीन्द्र जी,बहुत बढिया लिखा है।अच्छा लगा।
ReplyDeleteदोस्त तस्वीर थोड़ी बड़ी दिख रही है। इससे कविता की पंक्ति बिगड़ी मालूम पड़ रही है। बहरहाल, कविता ध्यान में लाने के वास्ते शुक्रिया।
ReplyDeleteब्रजेश झा
bahut sundar
ReplyDeleteप्यार सिपर्फ छाता नही है मेरे दोस्त
ReplyDeleteप्यार एक कविता है जिसे अकेले गुनगुना कर भी खुश हुआ जा सकता है
प्यार रसोई का धुंआ है जो रुलता तो है लेकिन जरूरी भी है
प्यार एक किताब है जिसपर जिंदगी के दस्तखत होते हैं
प्यार और क्या क्या तो है..............
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ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता है. सर्वेश्वर को याद करने के लिए धन्यवाद.
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