अपने गांव में दूसरी दफे आंखें नम हुई। पहली बार चचा की असामयिक मौत पर गम में और दूसरी बार खुशी से। (गांव में एक बदलाव को देखकर) गांव की एक बस्ती से गुजरते वक्त सड़क पर किताबों का बस्ता लिए साइकिल चलाती एक लड़की को देखकर मन खुशी से पागल हो उठा और खुशी से आंखें नम हो गईं।
एक ऐसा गांव जहां पहले साक्षरता का ग्राफ बेहद कमजोर हुआ करता था और लड़कियों का रिश्ता तो शिक्षा से यहां छत्तीस का था, उसी गांव में आज सड़क पर किताब का झोला लिए उस लड़की को देखकर मन खुशी से नाच उठा।
उस लड़की को मैंने अंतिम लड़की का नाम इसलिए दिया क्योंकि वह अकेली होकर भी मेरे नजर में बदलाव की वकालत करने वाली एक ताकतवर कोशिश का हिस्सा बन चुकी है। मैं सड़क पर मुक बना उस लड़की को देखता रहा और तेजी से वो आगे बढ़ गई।
सिनेमा के बड़े पर्दे की तरह मन कहीं दूर भाग गया और सोचने लगा कि इसी गांव में आज से कई वर्ष पहले तक लड़कियां स्कूल-कॉलेज नहीं के बराबर जाती थी, लेकिन आज इस बदलाव को देखकर मन में एक अलग प्रकार के उत्साह का संचार हुआ। मन सोचने लगा कि शायद इस साइकिल वाली लड़की की जमात में मेरे गांव की और भी लड़कियां शामिल हो। इसी आशा के साथ सड़क पर साइकिल चलाने वाली इस लड़की को मेरा सलाम।
एक कदम बढाने की जरुरत होती है किसी भी बदलाव के लिए और वो कदम उठाया जा चुका है इस अतिंम लड़की की तरफ से।
ReplyDeleteउस लड़की को मैंने अंतिम लड़की का नाम इसलिए दिया क्योंकि वह अकेली होकर भी मेरे नजर में बदलाव की वकालत करने वाली एक ताकतवर कोशिश का हिस्सा बन चुकी है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव हैं.आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ, अच्छा लगा.अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा..
आपके गांव में आए बदलाव को पएकर अच्छा लगा....बहुत बहुत बधाई आपलोगों को।
ReplyDeleteachi soch aur sakaratmak vichar. parivartan hona chahie lekin behtar ho to aur acha
ReplyDelete