Sunday, September 28, 2008

महरौली ब्लास्ट और मन


दिल्ली में इन दिनों आतंकवादी घटनाएं आम बनती जा रही है। सिलसिलेवार बम धमाकों की भयानक याद अभी जेहन में ही थी कि महरौली दहल उठी। हमारे अंदर भय के बीज बोने की कोशिश की जा रही है। हर जगह, हर कोई निंदा कर रहा है इन घटनाओं की।


हम न्यूजरूम में कल दोपहर जब बैठे थे तो उसी समय खबर आई की दिल्ली फिर दहल उठी है। मन फिर मायूस हो गया। आखिर मासूमों को निशाना बनाने के लिए लोग क्यूं आतुर हैं। कुछ नजर नहीं आ रहा है।


मनोज बाजपेयी के ब्लॉग पर गया तो वे भी इन धमाकों से कुछ सहमे दिखे। उन्होंने लिखा -

आज हमें भी अपनी जान का ख़तरा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि शायद मौत अचानक किसी बीमारी से न आकर किसी बम के धमाके के बीच होगी। क्यों मर रहे हैं लोग? क्या कसूर है इनका? जो मार रहे हैं उनके पास कारण क्या है? बहुत समझने की कोशिश की मारने वाले के कारण के बारे में समझने की।

लेकिन, मेरी समझ से तो यह परे है। किसी को क्या अधिकार है कि वो मासूमों पर बम फेंकना शुरु करे? आज ज़रुरत इस बात की है कि हम अपनी जान बचाने के लिए सजग रहें। ज़रुरत इस बात की है कि हम जहाँ भी रहें उसकी रखवाली खुद करें।

आज आवश्यक हो गया है कि हम सब ही मिलकर इस जंग को लड़ें। क्योंकि लगता तो नहीं है कि कोई और हमारी लड़ाई लड़ने वाला है।
मनोज की अंतिम दो पंक्तियों को समर्थन देते हुए आप भी हमारे साथ आएं।

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